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सृष्टि बचाने के लिए संयुक्त परिवार आवश्यक

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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बहुत पीछे न जाते हुए यदि मैं अपनी ही बात करूँ तो हर घर में दादा-दादी, चाचा-चाची, ताई-ताया, बुआ, माता-पिता के साथ अपने भाई-बहन और चाचा-ताया के बच्चे प्रायः एक छोटे से परिवार में संयुक्त रहते थे। जब माता-पिता स्वयं दादा-दादी बन जाते और दादा-दादी परलोक गमन कर जाते, तब बंटवारा होता और प्रत्येक इकाई फिर एक सम्पूर्ण परिवार बन जाती थी।
इसके पश्चात शुरू हुआ रोजी- रोजगार के चलते शहरों या शहरों से अन्य शहर की ओर युवा पुत्रों का पत्नी-बच्चों के साथ घर से पलायन। एकाध-२ बच्चे साथ में एकाध बच्चे बाहर, और यहीं से शुरू हुई एकल परिवार की धारणा। दादा-दादी, चाचा-ताऊ से दूर २ या ३ बच्चे अकेले पलने लगे।

परिदृश्य बदला। यही ३ बच्चे अपने २ बच्चे करने लगे। महिलाएँ भी अब व्यापार या नौकरी करने लगी, परिवार महिलाओं के बाहर रहने के कारण और सिमट कर अब तो १ बच्चे तक पहुँच गया।
यह बहुत चिंतनीय बात है कि आज के बच्चों के न मामा-मौसी हैं, न ताऊ-चाचा-बुआ और उनके बच्चे हैं। संयुक्त परिवार में बच्चे माँ- पिता पर बिना आर्थिक या पालन- पोषण के बोझ बने घर में अन्य बच्चों के साथ पल कर बड़े हो जाते थे। जन्म के साथ बच्चे में सामूहिकता, त्याग, समझौता, अपनेपन के भाव जैसे अच्छे गुण बिना बताए आ जाते थे। आज के अकेले मोबाइल लेकर बैठे गुस्सैल, आक्रामक, स्वार्थी बच्चे को देखकर स्थिति सोचनीय हो जाती है।
हमने धन, साधन, स्वार्थ के पीछे भागते-भागते अपने सामाजिक और पारिवारिक ताने-बाने को इतनी क्षति पहुंचाई है, जिसका सुधार अति शीघ्र नहीं हुआ तो, सुविधा-साधन तो रहेंगे, उपभोग करने वाले नहीं।
एकल परिवार हर तरह से हमारे समाज के लिए घातक है। आया के हाथों या किड्स केयर में पले बच्चे, दादा-दादी, बुआ, चाचा जैसे रिश्तों से अनभिज्ञ, मानवीय गुणों से रहित रोबोट से अधिक कुछ नहीं हैं। एकल परिवार की हानि अधिक, लाभ कम है। हमें देश, समाज, धर्म, मानवीय गुण, दैवत्व और सृष्टि बचाने के लिए फिर से संयुक्त परिवार में लौटना होगा।

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।