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सृष्टि रच रही असर…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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शाख हिले पवन से,
फूल-कली झूलते।
बिन दिखे पवन चले,
पौध मगन खेलते।
खार रहे शाख पर,
फूल को मिले शिखर।
सीखती न ज़िंदगी,
सृष्टि रच रही असर॥

वक्त यहाॅं साथ में,
जन्म से बना रहा,
सुख सभी भुला दिये,
दुखों में बुरा कहा।
तय समय बना हुआ,
हालतें दिया करे
हर पहर खिली रहे,
सृष्टि से रौशनी॥
सूर्य किरण भोर में,
शाम रात चाॅंदनी,
क्यों मलाल बन रहे,
हर घड़ी सजे पहर।
जिन्दगी के वास्ते,
सृष्टि रच रही असर॥
सृष्टि रच रही असर, सृष्टि रच रही असर…

तट नहीं मिला सकी,
संग में सदा बही,
घाट मिले अनगिनत,
साथ में बहा रही।
जब मिलें न तट तभी,
समुद्र में गिरा करे,
इसलिए डगर-डगर,
हर नदी बहा करे॥
बात यहीं प्यार की,
सीख जरा ज़िंदगी,
भावना मिली तुझे,
पर सजे न बन्दगी।
कर्म बिन न धर्म हों,
कर्म-धर्म की डगर।
देख कर न मानती,
सृष्टि रच रही असर॥
सृष्टि रच रही असर, सृष्टि रच रही असर…

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।