राधा गोयल
नई दिल्ली
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विद्यालयों में गर्मियों में २ महीने की छुट्टियाँ होती हैं। बच्चे बड़े खुश होते हैं, कि अब पढ़ाई से छुटकारा मिलेगा। सवेरे देर तक सोएंगे, आराम से नहाएंगे, खाएंगे और सारा दिन टी.वी. देखेंगे। माताएं परेशान कि अब छुट्टियों में बच्चों की धमा-चौकड़ी और चीख पुकार से उन्हें कैसे निजात मिलेगी। कुछ नुस्खे आजमाएं और बच्चों के शोर-गुल का आनंद उठाएं।
◾कक्षा ५ तक के बच्चों के लिए-
🔹बच्चे को किसी हाॅबी स्कूल में भेजें।
🔹यदि आपका एक बच्चा १० वर्ष का तथा दूसरा उससे छोटा है तो हॉबी क्लास से वापस आने के बाद बड़ा बच्चा शिक्षक का रोल करके वही काम छोटे बहन-भाई से कराए
🔹बच्चों के साथ १ खेल खेलें। उनसे कहें कि देखते हैं कितने मिनट में कौन-सा बच्चा अपना सामान अपनी ठीक जगह पर रखता है। महीने के आखिर में मम्मी उसे एक अच्छा-सा उपहार देगी। १ छोटी-सी डायरी में समय नोट करें कि उन्होंने यह काम कितने मिनट में किया।
🔹फिर बच्चों के साथ खेलें। उन्हें कहें कि देखते हैं कौन अपने कपड़ों को कितने मिनट में तह लगाता है। वह समय भी डायरी में लिख लें।
🔹जो आपका बड़ा बच्चा है, वह अपने छोटे बहन-भाई की उम्र के ३-४ बच्चों का समूह बनाकर उन्हें पढ़ाए। यदि हर पड़ोसी अपनी सुविधा के हिसाब से अपना १-१ घंटा भी इस प्रकार देगा तो आप देखेंगे कि आपकी समस्या काफी कम हो जाएगी।
🔹यदि आप स्वयं पढ़ी-लिखी हैं तो आप स्वयं भी ४-४ बच्चों के समूह बनाकर कोचिंग दे सकती हैं; किंतु वे समूह आपके ही बच्चों के हमउम्र बच्चों का हो तो ज्यादा अच्छा है, क्योंकि बच्चों की आदत होती है कि वह समूह में ज्यादा अच्छा पढ़ते हैं। वहाँ एक स्पर्धा की भावना होती है।
आप यह न सोचें कि आपके पति अच्छे पद पर हैं। आपको भला यह सब करने की क्या जरूरत है। बात आपकी जरूरत ही नहीं, बात सही दिशा-निर्देशन की है। सभी माताएं चाहती हैं कि छुट्टियों में बच्चों को किस प्रकार संभाला जाए। किस प्रकार उनकी चिल्ला-पौं से बचा जाए, क्योंकि छुट्टियों में माताओं का सारा दिन बच्चों की लड़ाई सुलझाने, उनका बिखरा हुआ सामान समेटने व उनकी खाने पीने की फरमाइशें पूरी करने में ही बीत जाता है।
🔹यदि बच्चे छोटे हैं तो उनके साथ ब्लॉक से खेलें। २-३ दिन आधा-आधा घंटे का समय निकालकर यदि आप बच्चों को उसमें से कहेंगी कि ए वाला ब्लॉक दो, बी वाला ब्लॉक दो।फिर स्वयं छाँट कर देंगी कि यह ए है, या यह क ख ग है। धीरे-धीरे बच्चा स्वयं उसमें से ढूँढ कर निकालेगा और खेल-खेल में बहुत कुछ सीख जाएगा। जितना समय आप बच्चे को डाँट-डाँट कर अपना मूड खराब करने में लगाएंगी, उससे कम समय में बच्चों के साथ खेल कर उस समय का सही उपयोग कर सकेंगी।
🔹जब आपको काम करना हो, बच्चे के पास तरह-तरह के ब्लॉक वालेे खेल पड़े रहने दें व टी.वी. पर बच्चों की मनपसंद कार्टून फिल्म लगाकर अपना काम करती रहें।
🔹दिन में पाँच-पाँच मिनट के लिए ही सही, ४-५ बार कोई गाना लगाकर बच्चों के साथ नृत्य करें। आपकी कसरत भी हो जाएगी और बच्चा भी खुश हो जाएगा। कुछ देर लेट कर साइक्लिंग करें। बच्चा भी देखा-देखी वैसा ही करेगा।
🔹छुट्टियों में बच्चों को सारा दिन कुछ ना कुछ खाने की इच्छा होती है। छुट्टियाँ शुरू होने से पहले ही घर में ऐसी चीज लाकर रख लें, जो चटपट बन जाए और गरिष्ठ भी न हो।
🔹यदि आस-पास कोई पार्क है तो वहाँ शाम को बच्चों को ले जाएं। खेल-खेल में बच्चों को कहें कि फलां पेड़ छूकर आओ। यदि आपके अपने ही २ बच्चे हैं तो यह काम ज्यादा आसान होगा, वरना आस-पास के १-२ बच्चों को इस खेल में शामिल कर सकती हैं।
🔹साफ-सुथरा कागज का टुकड़ा बच्चों को दें और कहें कि इसे होठों से दबाकर दौड़ो, देखते हैं कौन प्रथम आएगा। बच्चों को इस खेल में बड़ा मजा आएगा और सबसे बड़ी बात कि इस खेल से बच्चों की साइनस की बीमारी ठीक हो जाएगी। खेल का खेल और स्वास्थ्य में सुधार। एक पंथ-दो काज।
🔹घर जाकर बच्चों को हल्का-फुल्का नाश्ता देकर उनके लिए कार्टून फिल्म लगा दें तथा स्वयं आँख बंद करके प्राणायाम करें, जिससे आपकी काम करने की क्षमता में वृद्धि हो।
🔹जब खाना खाने का समय हो, उससे आधा घंटा पहले पुनः एक क्रम शुरू करें। १ ही छोटा बच्चा है तो १० मिनट उसके साथ ब्लॉक से खेलें और अपना काम करने उठ जाएं। बच्चा ८-९ वर्ष का है तो कोई भी विषय पढ़ाना शुरू करके उसे गृहकार्य करने के लिए दे दें। उसे सुनाने के लिए बिल्कुल न कहें।
🔹काम करते-करते कोई भी १ शब्द व उसका अर्थ बोलते रहें। फिर बच्चों से उस शब्द का अर्थ पूछें। ध्यान रहे कि १ दिन में १ ही शब्द, १ ही कहावत व १ ही लोकोक्ति खेल-खेल में सिखाएं।
🔹बच्चों को शिक्षक का रोल करने में बड़ा मजा आता है। जब आप थकी हुई हैं और लेटना चाहती हैं लेकिन बच्चा खेलना चाहता है, उसकी कोई किताब लेकर उसे बोल बोल कर पढ़े; किंतु उसमें जान-बझकर कुछ गलत पढ़ें और बच्चे से खुद को नासमझ समझ कर इसका मतलब पूछें। बच्चा पढ़ता रहेगा और आप शांति से दिमाग को बिल्कुल शांत करके उसकी बात को सुनती रहें।
🔹दिन में भी यदि आपके बच्चे बड़े हैं… यानी १०-१२ वर्ष तक की उम्र के तो २-३ लड़कियाँ तथा लड़के मिलकर किसी नृत्य या नाटक की प्रैक्टिस कर सकते हैं, जिनका अभ्यास करके भी विद्यालय के उत्सव में अथवा अपनी ही कॉलोनी के होली, जन्माष्टमी आदि के उत्सव के समय उस प्रतिभा का कौशल दिखाकर लोगों की प्रशंसा प्राप्त कर सकते हैं और आप भी अपना काम आराम से कर पाएंगी।
एक बार इन छुट्टियों में इन उपायों को आजमाने पर देखें, कि ऐसा करके आपको ज्यादा सुकून मिला या नहीं, या बिना आपके मानसिक तनाव के बच्चों ने कुछ नया सीखा और आपका समय बोरियत भरा होने की बजाय उत्साह से भरपूर रहा या नहीं।