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अच्छा खाना और सबेरे ६ बजे…

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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अच्छा खाने की किसे इच्छा नहीं होती है। कभी मुझे भी अच्छा खाने-पीने का शौक था। इसलिए कोई पार्टी या दावत,जिसमें मेरा निमंत्रण होता, मैं कभी नहीं चूकता था। मेरा गोल-मटोल शरीर देख मुझे प्यार से मेरे मित्र ‘गोलू’ कह कर बुलाते थे। दोस्तों के घर में जब भी अच्छा-अच्छा पकवान बनाती थी तब उनकी पत्नियाँ उन्हें मुझे बुलाने की फरमाइश किया करती थी, क्योंकि उन्हें पता था कि उनके बनाए पकवानों का सही-सही आकलन केवल मैं ही निष्पक्ष भाव से कर सकता हूँ। वैसे कभी-कभी उनके खराब पकवानों की भी मैं लंबी-चौड़ी तारीफ़ कर दिया करता था, तब भाभियाँ मेरे दोस्तों से कहती-‘तुम्हें तो हमारे द्वारा बनाए गए पकवानों की कोई कदर नहीं, एक यह भाईसाब हैं जिन्हें असली स्वाद का पता है। अच्छे स्वाद के मामले में आप लोग जिंदगी भर नालायक ही बने रहोगे।’
मेरी इस बात पर मेरे दोस्त मुझसे चिढ़ते बहुत थे। वे मन ही मन में मुझसे खुन्नस रखते थे, पर कभी कुछ बोल नहीं पाते थे। उन्हें पता था कि उनकी पत्नियाँ मुझ पर बहुत भरोसा करती हैं, और मैंने दोस्तों के बारे में सच-झूठ कुछ जो भी बोल दिया, तो वे तुरंत उस पर आँख मूँदकर विश्वास कर लेती है। फिर सबके सामने ही उनकी क्लास लेना शुरू कर देती है।
दोस्त के घर में जब भी पकवान बनता था, तब वे मुझे फोन पर उनके घर आने के लिए अनुरोध करते थे और मैं भी भाव खाता रहता था। मैं बोलता था कि ‘मेरे पास समय नहीं है…, मैं अभी कुछ जरूरी काम कर रहा हूँ..’ आदि। दोस्त समझ जाते थे कि मैं भाव खा रहा हूँ, और इसीलिए जब भी मुझे बुलाना होता था तब दो-चार दोस्त सीधे मेरे घर पहुँच जाते थे। और जिस हालत में घर पर होता हूँ, उसी में उठा कर गाड़ी में लाद कर घर ले जाते थे। मुझे ढंग से कपड़े भी नहीं पहनने देते थे। एक बार तो सुरेश मुझे फटी बनियान और चड्डी में ही उठा कर घर ले गया था। मैंने उससे हाथ जोड़ कर विनती की थी, कि भाई सुरेश मुझे जरा ढंग के कपड़े तो पहन लेने दे, पर उन लोगों ने लोग मेरी बात को पूरी तरह अनसुनी कर दिया और मुझे जबरदस्ती घर लेकर गए। जब उनके घर पहुँचा, तब भाभीजी मुझे उस हालत में देखकर अपने पति के ऊपर आग-बबूला हो गई, और अंदर से एक नया शर्ट-पेंट लाकर पहनने को दी। बोली,-‘भैया ये आज ही बनकर दर्जी की दुकान से इनके लिए आया है, लगता है कि आपको आ जाएगी। इसे जल्दी से पहन लें, और फिर खाने के कमरे में आ जाइए। मैंने आपके लिए बहुत अच्छे -अच्छे पकवान बनाए हैं। मेरा कंजूस दोस्त सुरेश मुझे खा जानी वाली नज़रों से देख रहा था, कि कैसे मैं उसकी नई शर्ट-पेंट को पहनकर शान से उसके सामने खड़ा था और उसे चिढ़ा रहा था। उसकी बोलती बंद थी, क्योंकि वो अपने घर में मेरे खिलाफ कुछ भी बोलता तो वह उसके ही खिलाफ चली जाती, उसकी पत्नी उसे ही बुरा-भला कहती। वह मन ही मन अफसोस कर रहा था कि काश! इसको घर में ढंग के कपड़े पहनने दिए होते तो मुझे इतनी हानि नहीं उठानी पड़ती।
इधर अच्छा-अच्छा खाने के चक्कर में मेरी तोंद बड़ चली थी, शरीर भी थुल-थुला और मोटा हो चला था, और वजन भी काफी बढ़ गया था। आजकल पैदल चलते वक्त मेरी साँस फूलने लगती थी। पहले मैं बड़े मजे से बहुत सारा खाना खाकर पचा लिया करता था और दूसरे समय का खाना भी मजे से खा लिया करता था, पर अब खाना खाने के बाद उसे पचाना भारी पड़ रहा था। और एक समय खाने के बाद दूसरे समय भूख नहीं लगती थी। कुछ दिन तक पाचन की गोलियाँ खाया करता था, पर कुछ दिन बाद उसने भी काम करना बंद कर दिया था। मुझे अच्छा-अच्छा तेल मसाला वाला तेज़ खाना पसंद था, पर मेरा पेट इन सब चीजों को अब बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। पेट में गैस, खट्टी डकार, बदहज़मी, और हर समय सुस्ती से मैं बहुत परेशान हो गया। इसका क्या निदान है सोचते-सोचते अपनी दुकान में बैठे-बैठे झपकी मारते रहता था।
हमारे देश में सबसे बड़ी सुविधा यह है कि यहाँ पर बिना पूछे ही लोग सलाह देने लगते हैं। हर व्यक्ति अपन-आपमें एक चिकित्सक है। कभी-कभी तो आपको अपनी समस्या बताने की भी जरूरत नहीं पड़ती है और लोग नुस्खा बताने लग जाते हैं। इस तरह मुझे भी बहुत लोगों ने एक से बढ़कर सलाह दी। मैंने कुछ दिन तक उनकी सलाह पर अमल किया। फिर सेहत में कोई भी सुधार नहीं होता देख छोड़ देता था।
एक दिन एक मित्र रमेश मेरी दुकान से कुछ सामान लेने आया। वह मेरी उम्र का था, पर उसका शरीर तंदुरुस्त था। मुझे ऊँघते देख वो मुझसे बात करने लगा और पूछा कि भाई तुम्हारी क्या समस्या है ? तब मैंने रमेश को अपनी समस्या के विषय में विस्तृत रूप से बताया। वह मेरी समस्या सुनकर बोला- चिंता करने की कोई बात नहीं है, मैं तुम्हें महीनेभर में ठीक कर दूंगा, वह भी बिना दवाई के।
मैं चौंक गया था, क्योंकि आज तक किसी ने भी मुझसे ऐसी बात नहीं की थी। मैंने पूछा, भाई करना क्या है। उसने बोला कुछ विशेष नहीं, ऐसा करना कि सबेरे ६ बजे अपने घर के सामने वाले पार्क में आ जाना, मैं वहां पर योगासन की क्लास लेता हूँ, तुम्हें भी मैं मेरी तरह चुस्त और दुरुस्त बना दूंगा।
बस फिर क्या था, दूसरे दिन सबेरे मैं पार्क में पहुँच गया और अन्य लोगों के साथ योगासन करने लगा। मेरे शरीर में लचीलापन नहीं था, इसलिए वो आसन जो दूसरे लोग आसानी कर ले रहे थे, उसे करने में मेरी जान निकल रही थी। मैंने मन ही मन संकल्प कर लिया था कि मुझे दोस्त जैसा चुस्त और दुरुस्त बनना है। घर पहुँच नहा-धोकर नाश्ता किया और फिर अपनी दुकान चला गया। मेरा सारा शरीर दर्द से अकड़ रहा था, पर मेरा मन बहुत प्रसन्न था। अंततः मुझे अपने- आपको दुरुस्त करने का उपाय मिल गया था। दोस्त ने मुझे फल, सब्जी इत्यादि ज्यादा मात्रा में खाने को बोला था और तेल-मसाले से दूर रहने के लिए बोला था। शुरू-शुरू में बेस्वाद उबला हुआ खाना खाने में मुझे रोना आ जाता था, पर ज्यों ही १ हफ्ते के भीतर मेरा वजन कुछ कम हुआ, मुझे अपने शरीर में हलकापन महसूस होने लगा, मेरी योगासन में दिलचस्पी बढ़ गई। अब मैं किसी के बुलाने पर भी खाने नहीं जाता था।
इस तरह से योगासन और खान-पान में ध्यान देते देते करीब ६ महीने बीत गए थे। एक दिन एक मित्र मोहन ने फोन पर मुझे अपने घर पर किसी विशेष घरेलू कार्यक्रम में शामिल होने के लिए शाम के समय बुलाया। मैं उस दिन जल्दी से दुकान बंद कर घर पहुंचा और अच्छा सा फिटिंग वाला शर्ट और पेंट पहन कर उसके घर पहुँचा। घर के दरवाजे पर मित्र मोहन खड़ा था, उसको हाय-हैलो किया, पर वो मुझे पहचान नहीं पाया। मैंने अपने स्वभाव अनुसार उसे चुन-चुन कर गलियाँ दी, तब वो मुझे पहचान गया, और मेरा हाथ पकड़कर सीधा घर के अंदर ले गया। अंदर उसका सारा परिवार, मेरे कुछ दोस्त और उनकी पत्नियाँ बैठी हुई थी। मेरा दोस्त जैसे बोला कि, देखो कौन आया है, पहचाना इसे! मुझे कोई भी नहीं पहचान पाया। केवल सुरेश बोला-चेहरे से यह हमारा गोलू लगता है, पर इतना चुस्त-तंदुरुस्त शरीर तो उसका हो नहीं सकता है। जब सभी लोग मुझे पहचानने का प्रयास करके थक गए, तब मोहन ने कहा वास्तव में ये गोलू ही है। मेरे दोस्त और उनकी पत्नियाँ भी अपने शरीर में उम्र के साथ-साथ थोड़ा वजन जोड़ लिए थे, तो मुझसे मेरे स्वास्थ्य के राज के विषय में बड़ी ही उत्सुकता के साथ पूछने लगे। तब मैंने उन्हें बताया कि अभी नहीं बताऊँगा। अगर सच में आप सभी को मेरे जैसे स्वास्थ्य बनाना है तो सबेरे ६ बजे घर के सामने वाले पार्क में आ जाना। वहीं पर हम सब मिल कर योगासन करेंगे और तभी मैं आप लोगों को अन्य सभी बातें बताऊंगा।
सभी दोस्तों की पत्नियाँ एक स्वर में राजी हो गई, और बोली कि वे सबेरे ठीक ६ बजे पार्क मेरे अपने-अपने पति को लेकर आ जाएंगे, पर मेरे सारे दोस्त रात को देर से सोते थे और सबेरे देर से उठते थे, मुझे घूरने लगे और मन-ही-मन गाली दे रहे थे और मुझे खा जानी वाली नज़रों से घूरने लगे थे कि गोलू ने कहाँ फंसा दिया ? उसके बाद क्या हुआ…, बाद में बताऊँगा…।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

 

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