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शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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भुला कर बैर सबका साथ में रहना जरूरी है,
कहा है सच बुजुर्गों ने जुड़े रहना जरूरी है।
जो पत्ता डाल से टूटे वो जोड़ा नहीं सकता,
उजाला घर में चाहे घर का दीपक भी जरूरी है।
अगर परिवार है संग में अकेला क्यों रहें बोलो,
अलग अपनों से रह कर ज़िन्दगी रहती अधूरी है॥

रहे सद्भभावना मन में कभी कटुता नहीं आये,
हमें छोटा-बड़ा अरु भेद मजहब का नहीं भाये।
लहू का रंग सबका एक सब संतान ईश्वर की,
ये फिर दुर्भावना है क्यों समझ में कुछ नहीं आये।
गले आपस में मिल जाओ मिटा दो जो भी दूरी है,
अलग अपनों से होकर जिंदगी रहती अधूरी है॥

जो बल संयुक्तता में है अकेले में नहीं होता ,
समझता बात इतनी-सी तो अपनों को नहीं खोता।
लिखा प्रारब्ध में उसको कहो कैसे कोई टाले,
अगर आती कोई विपदा अकेले बैठ कर रोता।
नहीं चलता है कोई जोर अब करनी सबूरी है,
अलग अपनों से होकर जिंदगी रहती अधूरी है॥

मिले माता-पिता परिवार ये अनमोल रिश्ते हैं,
निभाओ साथ जीवनभर धरा पर ये फ़रिश्ते हैं।
कभी भी जिंदगी में इनका तिरस्कार मत करना,
ये है उपहार ईश्वर का दुबारा पा नहीं सकते।
जो करते वंदना इनकी तो होती आस पूरी है,
अलग अपनों से होकर जिंदगी रहती अधूरी है॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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