दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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क्षीर सागर निवासी, विष्णु चक्रधारी,
कमलनयन, लक्ष्मीकांत, पीतांबरधारी
ब्रह्माजी जिनको नित स्मरण हैं करते,
याद करते उन्हें कैलाशपति त्रिपुरारी।
सहस्त्र नामधारी हैं, हमारे चक्रधारी,
कहलाते हैं वही श्री चौबीस अवतारी
मोहिनी रूप धरकर अमृत हैं बचाए,
धरा का भार सहते कच्छप अवतारी।
मुरलीधर मोहन थे कृष्णा अवतार में,
धनुर्धारी बने पुरूषोतम रामावतार में
शंख, चक्र, गदा, पद्मनाभ, श्याम वर्णम्,
धारण करते श्रीविष्णु जी अवतार में।
परम ईश्वर, परमेश्वर, दीनबंधु दीनानाथ,
श्रीधर, अनीश, क्षितिश हैं नाथों के नाथ
पुण्डरीकाक्ष, जनार्दन, वामन रूप महान,
नरसिंह अवतार ले दिया प्रह्लाद का साथ।
चतुर्भुज, मधुसूदन, पुनर्वसु, जगदीश, सुरेश,
श्रीनिवास, महीभर्ता, गोविंद, सुरानंद, दीनेश
दामोदर, अमिताशन, महीधर, शक्तिमतां,
हिरण्यगर्भ, धनेश्वर, सहस्त्रांशु, त्रिलोकेश।
जब-जब हो धरम की हानि लेते हैं अवतार,
अब कितने धरम की हानि होगी बोलो करतार।
अब चक्र सुदर्शन उठाओ, हे मेरे प्रभु चक्रधारी,
कलयुग का कष्ट दूर करो, हे दुनिया के भरतार॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।