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अभिलाषा

डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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उम्र के इस पड़ाव पर आकर,
क्या कोई अधिकार नहीं जीने का
सारी उम्र दबाती रही,
भावनाओं को नहीं थी कोई
वाह-वाह सुनने की उत्सुकता।
बस रहती है एक आशा,
कोई तो आकर सुने उसकी भी दांस्ता
दोहराना चाहती है वह कथाएं,
जो बीतती थी उसके साथ।
दबाती रहती थी अपने उदगार,
उम्र के इस ढलाव पर
बैठी रहती है सूनी आँखों में,
लेकर कुछ झिलमिलाते अश्रु बिन्दुओं को
कितने वसंत दबा दिए,
पर परिवार को पतझड़ ना होने दिया।
अब सब-कुछ भुला कर,
शान्त हो जाती अभिलाषा…॥

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