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काश! कोई मुझको पढ़ पाए…

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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कभी पवन से कभी नदी से
कभी पूछता हूँ उपवन से,
कहां गया है हंसा मेरा, कोई मुझको ये बतलाए
काश! कोई मुझको पढ़ पाए।

कभी बादलों के आँचल में
कभी तारिकाओं के दल में,
कहां खो गई साँसें मेरी, कोई मुसाफिर ढूंढ के लाए
काश! कोई मुझको पढ़ पाए।

मन की पीड़ा मन ही समझे,
नेह भंवर में ये क्यों उलझे।
जिसको पाने को तप की है, उससे कोई मुझे मिलाए,
काश! कोई मुझको पढ़ पाए॥

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