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अभिशाप को वरदान बनाया

राधा गोयल
नई दिल्ली
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” दादी! आप बता रही थीं ना कि एक व्यक्ति ने जेल में रहकर एमबीए समेत ३१ डिग्रियाँ लीं और अब कंपनी में डायरेक्टर हैं। उन्होंने एक किताब लिखी, जिसका बड़ा विचित्र-सा नाम है। वो कौन-सी पुस्तक है और वो व्यक्ति कौन है ?” रोहित ने दादी से पूछा।
दादी- “रोहित बेटा! उस पुस्तक का शीर्षक है ‘मेरी ज़िंदगी बदलने वाले ८ साल ३ महीने २६ दिन अहमदाबाद सेंट्रल जेल को समर्पित…।’ “
“किताब की ऐसी शुरुआत कभी देखी है ?”
“नहीं देखी। ऐसा विचित्र शीर्षक भी पहली बार सुन रहा हूँ।”
“ठीक कहा रोहित, क्योंकि यह विरले ही देखने को मिलता है। इस किताब में डॉ. भानुभाई पटेल की आत्मकथा है। उन्हें जेल में सजा काटने का कोई अफसोस नहीं हुआ। उन्होंने तो उसे अवसर की तरह इस्तेमाल किया।”
“लेकिन उन्हें सजा क्यों और किस बात के लिए मिली ?”
” बेटा! उनकी गलती न होते हुए भी उन्हें सजा भुगतनी पड़ी। वो १९८४ में एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद अमेरिका चले गए। उनका एक दोस्त भी विदेश वीजा पर अमेरिका पहुँचा था। वह अपनी सैलरी पटेल के खाते में ट्रांसफर करता था। इसके चलते पटेल फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट में फँस गए। दोषी पाए जाने पर उन्हें १० साल की सजा हुई।”
“दस साआआआल…” इतना लम्बा समय, जबकि उनका इसमें कोई कसूर भी नहीं था। फिर वो जेल से कब छूटे ?”
“बेटा! रोज अखबारों में पढ़ता होगा, कि अपराधी छूट जाते हैं, निरपराधी सजा भुगतते हैं, पर तू यह भी देख ना कि उन्होंने दुखी होने के बदले उस सजा को भी ‘अभिशाप’ न समझकर अवसर में बदल दिया। दिसंबर २०११ में वो कारावास भोग कर मुक्त हुए।”
“जेल से छूटने के बाद फिर क्या किया ?”
“जेल से छूटने के बाद उन्होंने २०१२ से १९ तक डाॅ. बाबा साहब ओपन यूनिवर्सिटी में काम किया।एक बार वो गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में गांधी नगर में एक वर्कशॉप में भाग लेने गए थे। वहाँ पी.सी. ठाकुर से उनकी मुलाकात हुई।”
“पी.सी. ठाकुर कौन ?”
“ठाकुर गुजरात में जेलों के अधीक्षक थे। उन्होंने कहा कि “भानु भाई आपको जेल में प्राप्त शिक्षा- शैक्षणिक उपलब्धियों के बारे में पुस्तक लिखनी चाहिए, ताकि अन्य कैदियों, विद्यार्थियों और पठन-पाठन प्रेमियों सहित अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिले।” बस यह बात उनके दिल में बस गई।सेवानिवृत्ति के बाद ‘लॉक डाउन’ के वक्त का रचनात्मक उपयोग करते हुए उन्होंने ३ भाषाओं में ३-३ पुस्तकें लिखीं। मतलब कि कुल ९ किताबें। ‘जेल की सलाखों के पीछे की सिद्धि’, ‘मेरी जेल यात्रा एक अतुल्य सिद्धि’ शीर्षक से २ किताबों में अपने अनुभव शब्दों में उतार दिए। ‘विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षण में सफलता की चाबी’ इन तीनों के हिंदी और अंग्रेजी संस्करण खुद भानु भाई ने तैयार किए।”
“कमाल है दादी।”
“अभी और कमाल सुन। तुझे शायद पता नहीं है कि अब तक इन किताबों की ५ हजार से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। ऑनलाइन भी इनकी किताबें उपलब्ध हैं।”
“आजकल वो क्या कर रहे हैं ?”
“रोहित, पटेल ब्रह्माकुमारी संस्थान से भी जुड़े हैं। उनके साथ सेवा प्रवृत्ति में संलग्न रहते हैं। भानु भाई बताते हैं कि उनकी जेल की सिद्धियों के बारे में सुनकर और उससे प्रेरित होकर ब्रह्माकुमारी संस्थान की २५० बहनों ने अपनी शिक्षा लेना फिर शुरू किया। उनका कहना है “मेरी आपबीती-प्रेरणा और लेखन से अन्य लोग भी प्रेरित हों, यह मेरे लिए संतोष की बात है। यही एक उद्देश्य भी।”
अब उनकी उम्र ७० साल की है, लेकिन वे अभी भी पूरी तरह से सक्रिय हैं। गुजरात के महुआ में आयुर्वेदिक और जैविक कृषि दवा बनाने वाली कंपनी में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के तौर पर सम्मानजनक ज़िन्दगी बिता रहे हैं।”
“दादी, वाकई ऐसे लोग हमारे लिए भी एक मिसाल हैं जिन्होंने समस्या को ही समाधान में बदल दिया। समस्याओं से पीड़ित नहीं हुए, परेशान नहीं हुए। दुखी नहीं हुए, बल्कि उन समस्याओं में भी सफलता का रास्ता ढूँढ लिया। शायद उन समस्याओं ने ही उन्हें इतनी ऊँचाई तक पहुँचने का मौका दिया।”

“तू ठीक कह रहा है रोहित। ऐसे ही लोग होते हैं जो समस्या में भी अवसर ढूँढ लेते हैं। चुनौतियों से नहीं घबराते। उन पर विजय प्राप्त करके ही दम लेते हैं।”