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आय हो करमुक्त और खर्च करयुक्त !

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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काला धन छिपाने और कर चोरी करने के कई तरीके हैं लेकिन जब अरबों-खरबों आ जाएं तो आप कुछ ऐसे तरीके अपनाते हैं कि आप सरकार की पकड़ के बिल्कुल बाहर हो जाएं। इनमें आजकल सबसे ज्यादा पसंदीदा तरीका यह है कि आप अपना सारा पैसा कुछ ऐसे छोटे-मोटे देशों जैसे पनामा,बरमूदा,लग्जमबर्ग और स्विटरजरलैंड आदि की बैंकों में छिपाकर रख दें। ये बैंक गोपनीयता बनाए रखते हैं और बहुत कम शुल्क लेते हैं। २०१५-१६ में जब ‘पनामा पेपर्स’ ने पोल खोली थी तो दुनिया में उससे काफी तहलका मचा था। कुछ भारतीयों के नाम भी उसमें थे। भारत सरकार ने उन्हीं दिनों इस तरह के काले धन को पकड़ने और दंडित करने का कठोर कानून भी बनाया था,लेकिन अभी ‘पेंडोरा पेपर्स’ के भांडाफोड़ ने सारी दुनिया में तहलका मचा दिया है। कई देशों के राष्ट्रपतियों,प्रधानमंत्रियों और बादशाहों के नाम भी उजागर हो रहे हैं। खोजी पत्रकारों के एक समूह ने १४ कंपनियों के लगभग सवा करोड़ दस्तावेजों में से खोजबीन करके २९०० खातों को पकड़ा है, जिनमें १३० बिलियन डाॅलर जमा हैं। इनमें ३०० भारतीय और ७०० पाकिस्तानी खातेदारों के नाम भी हैं। इन लोगों में ज्यादातर उद्योगपति और व्यापारी हैं लेकिन नेताओं,अधिकारियों,अपराधियों और तस्करों के नामों की भी भरमार है। उद्योगपति और व्यापारी तो प्रायः अपनी मेहनत का पैसा वहाँ छिपाते हैं,सिर्फ कर बचाने के लिए,लेकिन नेताओं, अफसरों और तस्करों का पैसा तो सर्वथा अनैतिक और अवैधानिक कामों से पैदा होता है,पर उनके इस अपराध का फायदा सभी उठाना चाहते हैं। सबको पता है कि जहां नेता और अफसर फंसते हैं, वहां झट से पर्दा डाल दिया जाता है,क्योंकि हर दल के नेता यही धंधा करते हैं। सरकार किसी भी दल की हो,वह नेताओं पर हाथ कैसे डाल सकती है ? इसीलिए भारत के ३०० खातेदारों के नाम अभी तक बताने में सरकार हिचकिचा रही है। सरकार चाहे तो उसका रवैया दो-टूक हो सकता है। जिन लोगों ने अपना पैसा विदेशी बैंकों में जमा करते वक़्त कानून का पालन किया है,उन्हें किस बात का डर है ? पाकिस्तान के कई मंत्रियों और अफसरों के नाम उजागर हो गए हैं और वे अपनी सफाइयाँ पेश कर रहे हैं। यहां असली सवाल यह है कि सरकार आयकर-कानून ऐसे क्यों नहीं बनाती कि लोग कम से कम कर-चोरी करें ? सरकार को आमदनी के बजाय खर्च पर कर लगाना चाहिए। यदि हर आदमी की आय करमुक्त हो जाए तो जो भी पैसा बचेगा,वह किसी अच्छे काम में लगेगा। यदि खर्च को करयुक्त बनाया जाए तो देश में जबर्दस्त बचत का अभियान चल पड़ेगा। देश के विकास के लिए पूंजी ही पूंजी उपलब्ध हो सकेगी।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

 

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