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इरादे हैं तुम्हारे बुलंद

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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हौंसलों की इस उड़ान से,
तुम ऊँचे उड़ो असमान पर
तुम्हारी चाह तो नहीं रुकने की,
तुम आगे बढ़ो
क्योंकि इरादे हैं तुम्हारे बुलंद।

एक नन्हा-सा पौधा भी,
अपनी मिट्टी से जुड़ा रहता है
वह जल्दी बड़ा होना चाहता है,
तो तू क्यों इतना सोचता है कल की
कल के लिए प्रयास जरूरी है, क्योंकि इरादे हैं तुम्हारे बुलंद।

सोचने वाले सोचते हैं बरसों की,
पर तुम हो मुसाफिर
कब रवानगी हो जाए पता नहीं!
विश्वास, संकल्प और आत्मविश्वास को
तुम डोलने ना देना,
तुम जीत कर आओगे आज नहीं तो कल,
क्योंकि इरादे हैं तुम्हारे बुलंद।

जिंदगी बहुत भूल-भुलैया से भरी है मेरे दोस्त,
कब, कैसे और क्यूं के प्रश्न चिन्ह से सजी है
पर इससे पार निकलने वाला ही जीतता है,
मझधार से जो मांझी नईया पार निकाले
वह समझदार है।
तुम आगे बढ़ो,
क्योंकि इरादे हैं तुम्हारे बुलंद॥