संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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निकलूं जो घर से बाहर-
सामना आकाश से होता है,
प्रेम मात्र अभिव्यक्ति नहीं-
इश्क विश्वास से होता है।
रंगरेज यहां बहुत है-
चुनरी धानी करने को,
चुनरी हो रंग के भी फीकी-
इश्क,चंद छींटों में छाप से होता है।
गढ़ना,ढलना खेल हाथों का-
है प्रेम नहीं मेल बातों का,
मूल चाहिए दृढ़ संकल्पित-
इश्क,स्थिर उर के चाक से होता है।
शब्द स्नेह के प्रीत में-
रह जाते काले से आखर,
छोड़े निशा नयन कागज़ पे-
इश्क,बूंद के आभास से होता है।
लडना,झगड़ना रीत मिलन-
मनुहार न हो रीत मिलन,
बिछड़ विरह जब याद सताए-
इश्क,उस आदत के पास से होता है।
प्रेम मात्र अभिव्यक्ति नहीं,
हर लम्हा विश्वास से होता है॥