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ईश्वरीय देन

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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मित्रता और जीवन…


जगत की रचना करके ईश्वर ने जीवन को रचा।जीवन के सुचारु निर्वहन के लिए जीवन को अनन्य रिश्तों से जोड़ा। इन रिश्तों को लहू के नाते-रिश्तों का रूप दिया, लेकिन फिर भी शायद जीवन के कुछ अभिन्न अंग छूट गए। जो शेष रह गए, उन्हें कालांतर में जीवन के साथ व्यवहारिक रूप से मिलवा दिया, जो ‘मित्रता’ का रिश्ता कहलाया।
अतः जीवन में मित्रता को ‘ईश्वरीय देन’ कहना गलत नहीं होगा।
ईश्वर ने जीवन को मित्रता सिर्फ़ दी ही नहीं, अपितु जीवन काल में स्वयं की लीलाओं द्वारा निभा कर भी दिखलाई।
युगों-युगों से त्रेता युग में प्रभु श्री रामचंद्र की मित्रता, सुग्रीव जी,और विभीषण जी से चिरपरिचित है, तथा द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण की सुदामा जी से मित्रता को कौन नहीं जानता।
आज भी समय-समय पर इस ईश्वरीय देन की चर्चा अक्सर देखने, सुनने, पढ़ने को मिलती रहती है।समय के साथ-साथ परिस्थितियों में बदलाव होते गए। वर्तमान युग की बालकथाओं में चूहे द्वारा शेर का जाल काटकर उसे आजाद करवाना एक अद्भुत मित्रता के लक्षण को प्रदर्शित करता है।
तात्पर्य यह है कि मित्रता प्रत्येक जीवन के लिए एक अभिन्न रिश्ता है, जिसे ईश्वर ने सिर्फ़ बनाया ही नहीं बल्कि निभा कर दिखाया भी है। तथापि, मानव प्रजाति का यह कर्तव्य बनता है कि मित्रता के सम्बंधों को नि:स्वार्थ भाव से, द्वेष और लोभ को त्याग कर श्रद्धा और प्रेम की भावना से मित्रता को ईश्वरीय देन मानकर निभाया जाए।

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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