संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
**********************************
प्रथम चरण एकांत का
धड़कन मेरी सुना रहा,
धुन देह क्रिया का मेरी
मंद-मंद गुनगुना रहा।
सांकल से बांधा जीवन
खूंटा घर का द्वार हो,
लोभ-प्रलोभ मानो जैसे
तेरी खरपतवार हो।
यज्ञोपवित की तैयारी
हो अशुद्धि भगाने को,
मानो हो एकांत पुरोहित
शुद्ध मुझे बना रहा।
उलझी,सुलझी-सी गुत्थी
मन-मस्तिष्क घर-बार की,
काट रहा गीता बन कर
और सार मुझे सुना रहा।
कर रहा प्राण-प्रतिष्ठा
जीते जी पूर्ण जन्म-सी।
मंत्रोच्चार मौन मंत्र का,
एकांत मेरा गुनगुना रहा॥