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उम्मीदों का साथ न छोड़ो

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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आज निराशा ने है घेरा,
कल रस्ता मिल जाएगा
ईश्वर से तुम नाता जोड़ो,
उम्मीदों का साथ न छोड़ो…।

संकीर्णता के जाल से निकलो,
खुला आसमाँ बुला रहा है
अपनी हद की सीमा तोड़ो,
उम्मीदों का साथ न छोड़ो…।

कब आएगी जीवन में बहारें ?
ख़ुशियों की न राह तको
हर पल ख़ुशी को निचोड़ो,
उम्मीदों का साथ न छोड़ो…।

क़िस्मत ने जिन्हें ठुकराया है,
कुछ वक्त ने जिनको तोड़ा है
उन टूटे दिलों को तुम जोड़ो,
उम्मीदों का साथ न छोड़ो…।

क्यूँ भरम ने तुमको घेरा है,
कुछ तेरा है न यहां मेरा है
ये भरम का भांडा फोड़ो,
उम्मीदों का साथ न छोड़ो…।

चाहें कितनी रात को काली,
सुबह को सूरज निकलेगा
मंज़िल की तरफ़ मुख मोड़ो,
उम्मीदों का साथ न छोड़ो…।

मन की बात नहीं सुनना,
मन पगला है-मन नादां है।
इस मन के पीछे मत दौड़ो,
उम्मीदों का साथ न छोड़ो…॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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