तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान)
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योग दिवस विशेष…..
आज इंसान कट रहा है
अपनी मूल जड़ों से,
अपनी संस्कृति से
अपनी सभ्यता से।
कट रहा है अपने
जीवन के पुरातन,
सिद्धांतों से
कट रहा है,
अपनी प्रकृति से,
अपनी धरती से।
कट रहा है
मानवता से,
सहजता से
कट रहा है,
रिश्तों की डोर से
परिवार से,
यहां तक इंसान
कट रहा है इंसान से।
आज हम सब मना रहे हैं
विश्व ‘योग-दिवस’,
क्या हमने
सही मायने में,
योग’ शब्द का
अर्थ समझा है ?
शायद नहीं क्योंकि,
अगर हमने
समझा होता तो,
आज ये कटाव की स्थिति
कभी नहीं आती,
इस कटाव की
प्रवृत्ति को रोकना होगा,
‘योग’ का अर्थ है (+)
यानि जुड़ना।
तन-मन -मस्तिष्क से
हमारा जो भी कर्म हो,
ईश्वर के प्रति
समर्पण भाव से हो।
अगर हम अपना जीवन
प्रकृति और परमात्मा से
जुड़कर करेंगे तो,
हमें वर्ष में एक बार
‘विश्व योग दिवस’
मनाने की
आवश्यकता नहीं होगी।
फिर तो हमारा
हमेशा ही,
‘योग-दिवस’ होगा॥
परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।