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कर्म कलम-कागज का…

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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कलम कनक की भले नहीं है,
अक्षर असर तो
फिर भी करेंगे।
कागज करार भले ही करे न,
मसि कसी तो
सब सार सरेंगे।

पटल रजत जो कभी मिला तो,
पीड़ा तृण कण्टकों
की हरेंगें।
उम्मीद-पंख भले कोमल हो,
लेखन से नभ
परवाज उड़ेंगे।

एक से मिल एक ग्यारह बने तो,
कदम चले,
मंजिल पे जमेंगे।
स्याह स्याही जो कागज ढली तो,
ज्ञान के अगणित
दीप जलेंगे।

न मिले भले सम्मान सिक्कों के,
लिख-लिख तब
कागज भी चलेंगें।
शान हमारी जो न कभी बनी तो,
कलम की धार
और तीक्ष्ण करेंगें।

दिलकश भावों को सहेज सके हो,
कलमकार बन
कागज भरेंगे।
अक्स समाज का लफ़्ज बने जो,
जन के मन
फिर न कभी डरेंगें।

अन्याय अनीति अपमान अवक्षय,
राम शर की
जन-ज्वाला जलेंगें।
वाणी वीर विपुल-सी न सही वो,
स्वर समय का
सजा-साज सुनेंगें।

कमजोर कमसिन कमतर कर भी,
देकर जोश जोर
पुरजोर भरेंगें।
तीक्ष्ण तीर तरकश तेजस तो,
तेज थार
तट-तिनपार तरेंगें।

प्रेम पीर,प्रकृति पुर पूरण का,
प्राण प्रणय
प्रण पर पुरेंगे।
जलद जो जम-जमकर झमके,
मन मयूर
मदमस्त उड़ेंगें।

लेखन लक्ष्य लेकर लोह लहके,
लिखकर लेख
उल्लेख लिखेंगें।
रंग-रंग से रंग रहे संस्कृति संग,
पावन-होली के
रंगों से रंगेंगें।

काया-खाक कर्म-तत्व बनाकर,
आत्मा से
कण-कण में रमेंगें।
आरती माँ भारत-भू की ‘अजस्र’
भारत-भाग्य
विधाता भजेंगें

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि १७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान आदि मिले हैं।

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