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पहल साहसिक साबित होगी या ?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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उस सियासी कार्यक्रम की बलिहारी कि मात्र ७ महीने में तकरीबन वो पूरा बाॅलीवुड ‘देशद्रोही’ हो गया,जो इसी साल मार्च में ‘कोरोना’ तालाबंदी की शुरूआत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थन में खड़ा हुआ था और उसने देश को कोरोना से बचने वास्ते ‘जनता कर्फ्यू’ का समर्थन किया था। उनमें कुछ नाम तो वो ही थे,जो आज सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा ट्रोल(खिंचाई) हो रहे हैं,मसलन ‍अमिताभ बच्चन,अनिल कपूर, अक्षय कुमार,अजय देवगन,माधुरी दीक्षित आदि। उसी बाॅलीवुड को अब एक नए कोरोना ने डस लिया है। हालत यह है कि उसे आत्मसम्मान बचाने की खातिर अदालत की शरण लेनी पड़ी है। इसके भी खिलाफ बहिष्कार बाॅलीवुड उद्योग जमकर चल रहा है,क्योंकि बाॅलीवुड की ३४ जानी-मानी हस्तियों,फिल्म निर्माताओं और संस्थानों ने उद्योग को बदनाम करने की कोशिशों के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। इसे ‘बाॅलीवुड का एका’ बताया जा रहा है,हालांकि इसमें वो नाम नदारद हैं,जो कंगना के पक्ष में बयान देते रहे हैं। इसी के समानान्तर दूसरा एक सूत्र ‍निजी क्षेत्र से आ रहा है,जहां कुछ नामी उद्योगों ने चंद ‘जहरीले’ टी.वी. चैनलों को अपने विज्ञापन देने से तौबा कर ली है।
बीते ४ महीने से बाॅलीवुड में चल रही उथल-पुथल और खेमेबंदी का यह नया मोड़ है, इसका अंजाम क्या होगा,कहा नहीं जा सकता,लेकिन लगता है कि सुशांत मौत प्रकरण में इंसाफ दिलाने की मुहिम के सियासी कार्यक्रम से जो बात शुरू हुई थी,वह अब बाॅलीवुड की अपनी इज्जत बचाने के मुकाम तक आ पहुंची है। बाॅलीवुड में राजनेताओं से नजदीकियां और सियासी दलों की घुसपैठ नई बात नहीं है,पर ये दुश्मनियों में कभी नहीं बदलीं। इसी तरह यौन व आर्थिक शोषण,आपसी प्रतिस्पर्द्धा, पेशेवर जलन,अपराध जगत का दखल, काला धन और नशे का इस्तेमाल भी ‘खुला रहस्य’ रहा है,लेकिन सुशांत मामले में रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी, कंगना रनौत द्वारा बाॅलीवुड की तुलना ‘पीओके’ से करने,उसके बाद कंगना का दफ्तर ढहाने और पूरे बाॅलीवुड को ‘गंदगी’ बताने की घटना से बाॅलीवुड के वो तमाम लोग भी विचलित हो उठे,जो सीधे तौर पर किसी सियासी खेमे में नहीं हैं। पहली बार ऐसा हुआ कि खिंचाई का दायरा बाॅलीवुड के ३ खानों से कहीं आगे जाकर बहुत से लोगों को लपेट में ले रहा है। जब सुशांत प्रकरण में ‘हत्या’ का कोई ठोस सबूत जांच एजेंसियो के हाथ नहीं लगा और खुद बाॅलीवुड के चेहरे ही एक-दूसरे के कपड़े उतारने लगे,तब लोगों को लगा कि पानी सिर से ऊपर निकल गया है। कुछ तो करना होगा,अपनी इज्जत अपने हाथ,क्योंकि बाॅलीवुड की इस खिंचाई के पीछे राजनीति के साथ टी.वी. चैनलों की ‘टीआरपी’ की आपसी लड़ाई भी शामिल है। अब एक खास मकसद से ज्यादा से ज्यादा तमाशबीन इकट्ठे करने का यह नया चलन है। ‘देशभक्ति’ और ‘देशद्रोह’ की यह नई परिभाषा है। शायद इसीलिए कुछ नामी हस्तियों ने याचिका दायर कर गुहार की है कि,२ टी.वी. चैनलों (‘द रिपब्लिक’ व ‘टाइम्स नाउ’) को अपमानजनक टिप्पणियां करने तथा हमारे निजता के अधिकार का हनन करने से रोका जाए। हालांकि,याचिका लगाने वालों में कुछ के खिलाफ पहले से कई आरोप हैं।
इस पहल के बरक्स एक खबर यह भी आई कि बजाज ऑटो लि. ने ऐसे ‘जहरीले चैनलों’ को अपने विज्ञापन बंद करने की घोषणा की है।
यहां सवाल यह कि क्या बाॅलीवुड हस्तियों का अदालत की शरण में जाना,उन्हें सचमुच कोई राहत दिलवा सकेगा? साथ ही विज्ञापन बंद करने से उस कार्यक्रम पर दूरगामी असर होगा,जो जिसका अपना एक सुनियोजित लक्ष्य है ? या फिर विज्ञापन रोकने का दम दिखाने वाली कंपनियां ही खुद चीं बोल जाएंगी ? क्योंकि उनका ये फैसला परोक्ष रूप से सत्ता से पंगा लेने वाला भी है। नई परिस्थितियों में बाॅलीवुड डूबने की ओर बढ़ रहा है या फिर ये उसे तारने की बड़ी कोशिश है ? क्योंकि जो अभियान चलाया जा रहा है,उसका राजनीतिक-सामाजिक उद्देश्य बिल्कुल साफ है। पहला तो यह कि बाॅलीवुड के कुछ आकाओं की दबंगई किसी भी तरह खत्म की जाए और दूसरे ऐसी फिल्में बनाने या चलवाने को प्रोत्साहित किया जाए,जो सत्ता के लिए ‘अनुकूल’ हो। यह कितना दूरगामी और कारगर होगा,यह आने वाला समय बताएगा।
सवाल कई हैं। फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि कुछ चैनलों द्वारा प्रसारित इकतरफा खबर और कार्यक्रमों के खिलाफ आवाज उठना शुरू हो गई है। इसका आगाज बाॅलीवुड और उद्योग जगत से हुआ है। इसी तरह की आवाज उन दर्शकों की तरफ से उठ रही है,जो टीवी चैनलों को ताजा खबरों और ज्ञानवर्द्धक सूचनाओं,विश्लेषणों के लिए ज्यादा देखते हैं। यक्ष प्रश्न यही है कि इस आवाज का कोई सकारात्मक अंजाम होगा या फिर हम अब एक नई तथा और ज्यादा अनैतिक मारकाट के साक्षी बनने वाले हैं ?

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