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काश! कोई पूछता..

दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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काश कोई पूछता मुझसे,
पीड़ा व्यथित हृदय की
लगाता जो मरहम प्यार का,
कुछ पीड़ा कम हो जाती।

काश! कोई समझ पाता,
मेरे दिल में उठता तूफान
फिर हौले से दिखला जाता,
राह मुझे खुशियों की।

काश! कोई देख पाता,
मेरे दिल के सूनेपन को
चुपके से बस जाता दिल में,
दूर कर देता तन्हाइयों को।

काश! कोई कर पाता महसूस,
मेरे अंतर्मन के भावों को।
डूबकर भावनाओं के समंदर में,
अपना लेता जो मुझको॥