राधा गोयल
नई दिल्ली
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कृष्ण तुम्हारी बहुत जरूरत, धरती पर आओ,
दुःशासन को कैसे मारें, हमको सिखलाओ।
गली-गली में नरकासुर हैं, करे कौन प्रतिकार ?
कृष्ण कन्हैया तुम ही इनका कर सकते संहार।
गली-गली आबरू लुट रही, मर्यादा नीलाम,
चीख रही है आज द्रौपदी, लाज बचा लो श्याम।
जरासन्घ का सर्वनाश कर, जन की पीर हरो,
हर नुक्कड़ पर कंस खड़ा है, उसका नाश करो।
खड़ा हुआ शत्रु सीमा पर, वेश मित्र का धार,
कहता कुछ, पर मन में उसके कुत्सित कुटिल विचार।
सेना तो मजबूत है, लेकिन बँधे हुए हैं हाथ,
वो कुछ करना भी चाहें, तो कोई न देता साथ।
रोज-रोज सैनिक मरते, बच्चे हो रहे अनाथ,
अबलाओं के अश्रु पोंछने, आ जाओ श्रीनाथ।
हमें युधिष्ठिर नहीं चाहिए, और न ही बलराम,
शठ को कैसे निपटाना है, तुम आकर दो ज्ञान।
शतरंजी चालों की बिछी हुई है आज बिसात,
वोटों के सौदागर देते नित्य नई सौगात।
कोरे सपने, झूठे वादे, झूठी हैं सब बात,
इनको कोई रोक सके, ये किसकी है औकात ?
माधव तुमको आज धरा पर आना ही होगा,
अपनी कूटनीति को फिर से दोहराना होगा।
दुर्योधन-सा हठी पड़ौसी, चलता कुत्सित चाल,
अब हम धीरज खो बैठे हैं, मन में है भूचाल।
कालियामर्दन! तुम्हें धरा पर आना ही होगा,
अपने आर्यावर्त का मान बचाना ही होगा।
कवियों उठो, वीर रस का तूफान जगाना है,
उठो लेखकों, एक नया इतिहास बनाना है॥