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“क्या तुममें से कोई राम है ?”

राधा गोयल
नई दिल्ली
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राम कथा के संदर्भ में विजयादशमी रावण पर राम की विजय का दिन है, जिसे प्रतीकात्मक स्तर पर हम बुराई पर अच्छाई की विजय और अंहकार के नाश के रूप में देखते हैं। इस प्रतीक को प्रत्य़क्ष रूप से दर्शाने का माध्यम है-सालों से चला आ रहा रावण के पुतले का दहन।
आज के हमारे सामाजिक परिप्रेक्ष्य में कितना अर्थपूर्ण है रावण के पुतले का दहन ? क्या हम आज सचमुच रावण दहन की पात्रता रखते हैं ? यदि बोल सकता तो क्या कहता आज रावण हमसे ?
रावण का अट्टहास मेरे कानों के पर्दे फाड़ रहा है। समय खड़ा-खड़ा अट्टहास कर रहा है। समय फुफकार रहा है-
“मैं कहाँ बदला ? मैं तो सतयुग में भी ऐसा ही था, द्वापर में भी ऐसा ही, और कलयुग में भी ऐसा ही हूँ। लोग बार-बार यह क्यों कहते हैं, ‘घोर कलयुग आया है, घोर कलयुग आया है।’ क्या सतयुग में कलयुग नहीं था ? गौतम ऋषि ने अहिल्या का परित्याग क्यों किया ? इतने बड़े ऋषि होकर क्या उनको यह ज्ञान नहीं था कि नारी की गरिमा होती है। वह पूर्ण सम्मान की अधिकारिणी है। जो पति को ही भगवान मानकर उसकी सेवा करती रही, उसको अपराधी न होते हुए भी अपराधी माना और त्याग दिया। समाज ने भी उसका बहिष्कार कर दिया। हम कहते हैं, कि वो शिला बन गई। सच में पत्थर नहीं बनी थी वो। यदि किसी स्त्री को उसका पति त्याग दे और समाज भी उसका बहिष्कार कर दे तो वह शिला समान ही हो जाती है। पत्थर की तरह जड़वत हो जाती है। खाने-पीने के संसाधन कहाँ से जुटाएगी ? कोई बोलने वाला नहीं होगा तो जड़वत तो हो ही जाएगी। आज तो आए दिन ऐसी खबरों से अखबार भरे होते हैं। खतावार कोई और सजा केवल औरत को ? कितने पुरुषों ने ऐसी अहिल्याओं को सम्मान से जीवन जीने का अधिकार दिलाया ?”
रावण ने सीता का अपहरण किया तो अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए। सबको पता होगा कि पहले जमाने में यह रिवाज था कि यदि किसी स्त्री ने किसी पुरुष को मन ही मन अपना पति स्वीकार कर लिया तो उस पुरुष का यह कर्तव्य बन जाता था कि वह हर कीमत पर उसको अपनी पत्नी बनाए। शूर्पणखा ने तो स्वयं प्रणय निवेदन किया था और उसके उस निवेदन को ठुकरा दिया गया था। किसी भी स्त्री के लिए उस जमाने में यह बहुत बड़ा अपमान था। द्वापर युग की घटना ले लो। रुक्मिणी श्री कृष्ण को चाहती थी। उसने कृष्ण के पास पत्र भेजा और श्रीकृष्ण उसके भाई रूक्मि से घोर युद्ध करके रुक्मिणी का हरण करके लाए एवं द्वारिका में आकर उससे विवाह रचाया। भाई रूक्मि, कृष्ण के विरुद्ध हो गया था।
ऐसे ही संयोगिता पृथ्वीराज को चाहती थी। जयचंद ने द्वारपाल के स्थान पर पृथ्वीराज की मूर्ति लगवा दी। संयोगिता ने उस मूर्ति के गले में ही वरमाला डाल दी। पृथ्वीराज ने अपने क्षत्रिय धर्म का पालन किया। भयंकर लड़ाई करके संयोगिता को लेकर आए और विवाह किया।
महाभारत के तो अनेक किस्से हैं। किस-किस किस्से के बारे में बताएँ। किसी ने नहाती हुई मेनका को देखा और अपने ऋषि धर्म से विचलित हो गया। वीर्य स्खलित हुआ जिसे एक मछली ने पिया और सत्यवती का जन्म हुआ, जिसे मत्स्यगंधा भी कहा जाता है। उसे ‘योजनगंधा’ भी कहा जाता था, क्योंकि उसके शरीर की बदबू दूर तक जाती थी। एक धीवर ने उसका पालन-पोषण किया था। नदी पार कराते समय पाराशर ऋषि का उस पर दिल आ गया। उन्होंने सत्यवती से समागम किया और कृष्ण द्वैपायन (व्यास ऋषि) का जन्म हुआ।
भीष्म ३ कन्याओं का अपहरण करके लाए और सत्यवती के पुत्र से २ का विवाह करवाया। बाकी १ रह गई जो अपमानित हुई और बाद में शिखंडी के रूप में जन्म लिया। सत्यवती का पुत्र भी मृत्यु को प्राप्त हुआ और वंश को आगे बढ़ाने के लिए (दोनों पुत्रवधू व एक दासी) सत्यवती के पुत्र वेदव्यास ऋषि द्वारा नियोग पद्धति से ३ पुत्र प्राप्त किए-धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर।
भीष्म को अपना वचन बहुत प्यारा था, जिसके कारण उन्होंने अंबा से शादी नहीं की। यदि कर लेते तो इतना कुछ न होता। शायद महाभारत ही न होती।
पाँच पांडव पुत्र… पाँचों के पिता अलग-अलग। द्रौपदी को ५ पतियों की पत्नी बनना पड़ा। इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या होगी, और वह पति भी उसके सम्मान की रक्षा करने में असमर्थ रहे। उसकी लाज भरी सभा में लुटती रही और वे मौन रहे। वह तो कलियुग की पराकाष्ठा थी। जो समाज एक महारानी के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकता… पाँच-पाँच पति होते हुए भी जिस औरत की… जिस कुलवधू की भरी सभा में मर्यादा तार-तार हो जाए… यह घोर कलयुग नहीं है, तो क्या है…?
आज तो वैसे ही आधुनिक संचार माध्यमों के कारण बच्चे और बड़े इंटरनेट और मोबाइल पर न जाने कैसी-कैसी अश्लील फिल्में देखते हैं कि उनकी भावनाएँ भड़क उठती हैं और जाने कैसे-कैसे कुकर्मों को अंजाम दे देते हैं कि मानवता शर्मसार हो जाती है। आज तो हर गली-नुक्कड़ पर शरीफों के वेश में रावण घूम रहे हैं। छोटी बच्चियों से लेकर वृद्धाओं तक की इज्जत सुरक्षित नहीं, तो किशोर लड़कियाँ कैसे सुरक्षित रहेंगी ?
रावण कह रहा है, “मुझे मारने से पहले तुम्हें राम बनना होगा। उन्होंने केवल अपनी पत्नी के लिए नहीं, अपितु समस्त नारी शक्ति के सम्मान हेतु यह किया। आज के पिशाच पुरुषों के विचारों में इतनी कामुकता भरी हुई है कि उनकी कलुषित भावना के कारण कोई स्त्री सुरक्षित नहीं। भावनाएँ भड़काने वाले चित्रों या फिल्मों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाते ?
आज रावण ‘अट्टहास’ कर रहा है। भीड़ में खड़ा होकर पूछ रहा है.., “मुझे तो हर वर्ष जलाते हो। यहाँ तो हर युग में कितने ही रावण पैदा हुए हैं। उनको क्यों नहीं जलाते ? मैंने तो कभी सीता को हाथ तक नहीं लगाया। जब भी उसके पास गया, अपनी पत्नी के साथ ही गया। आज तो हर गली में एक रावण है। उनके लिए क्या किया ? क्या उन्हें जलाया ?? अपने अंदर के रावण को जलाया ??
प्रतीक रूप में अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में मेरे पुतले बनाकर जलाना तो समझ में आता है। जरूर जलाओ, क्योंकि इससे बहुत से लोगों को रोजगार भी मिलता है, पर आज तक कितने ऐसे हैं, जिन्होंने इससे सीख ली-
क्या औरतों की अस्मिता को लुटने से बचा पाए ?, क्या कोई ठोस उपाय कर पाए ?”

समय अट्टहास कर रहा है। रावण पूछ रहा है-“क्या इतनी बड़ी भीड़ में तुममें से कोई राम है ?”