दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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क्यों करता हूँ कागज काले ?
बैठा एक दिन सोच कर यूँ ही,
शब्दों को बस पकड़े और उछाले।
आसमान यह कितना विस्तृत,
क्या इस पर लिख पाऊंगा!
जर्रा हूँ मैं इस माटी का,
माटी में मिल जाऊंगा।
फिर भी जाने कहां-कहां से,
कौंध उतर-सी आती है।
अक्षर का लेकर स्वरूप वही,
कागज पर छा जाती है।
लिखूं लिखूं मैं किस-किसकी छवि को,
सोच कर मन घबराए।
वह बैठा है मेरे ही मन में,
बस वही राह दिखाए।
कहता है वह और लिखता मैं हूँ,
क्यों ना समझे ये जग।
पार तभी तो पाएगा,
जब वह उतरेगा स्वमग।
कुछ करने,मानवता के पण में,
उसने मुझे चुना है ।
सुनो ना सुनो तुम ओ जग वालों,
मैंने तो यही सुना है ।
अखबारों के पृष्ठों पर छा जाना,
मेरा इसमें ध्यान नहीं।
सम्मान पन्नों के बोझ तले दब जाऊं,
यह भी मेरा अरमान नहीं।
कागज पर मैं छा जाना चाहूँ,
जो दिल में है सब बताना चाहूँ।
कागज की छोटी नाव बनाकर,
कलम से उसको मैं खेना चाहता हूँ।
जो आवाजें दबी हुई आसपास में,
मैं उनकी ही बस कहना चाहता हूँ।
बचपन की भूली हुई भक्ति ने,
शक्ति ये दिखलाई है।
उसने जो कुछ मुझे दिया था,
अब लौटाने की रुत आई है।
तन में,मन में
या इस जग के,जन-जन में,
बस रहता विश्वास है उसका।
सच झूठ के संसार में,
एक वास्तविक रूप है उसका।
है बहुत कुछ अभी जिंदगी और बन्दगी में उसकी,
नेमत जो बस बनी रहे तो करता रहूं बस खिदमत उसकी॥
परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|