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क्रांतिकारी उपन्यासकार रहे मुंशी प्रेमचंद जी

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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स्वत्रंत्रता के सेनानी व उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद जी के जयंती दिवस पर सुमन श्रद्धांजलि अर्पण।
भारत की स्वतंत्रता केवल बन्दूक की नाल या अग्निगोला या अनशन से नहीं आई थी। इसके पीछे लेखकों की तीक्ष्ण कलम की धार भी थी। इसके जलन्त उदाहरण मुंशी प्रेमचंद जी हैं। उनकी जीवनी का अध्ययन करने से इस दृष्टिकोण से मुंशी प्रेमचंद जी एक निर्भीक स्वतन्त्रता सेनानी रहे। उन्हें जब १८९८ में कक्षा १० उत्तीर्ण कर सरकारी अध्यापक की नौकरी मिली,तब चुनार में एक अंग्रेज सेना की पल्टन भी रहती थी। एक बार अंग्रेज दल और विद्यालय दल का फुटबाल मैच हो रहा था। विद्यालय वाले दल के जीतते ही छात्र उत्साहित होकर शोर करने लगे। इस पर एक अंग्रेज सिपाही ने एक छात्र को लात मार दी,यह देखते ही धनपतराय उर्फ मुंशी प्रेमचंद जी ने मैदान की सीमा पर लगी झंडी उखाड़ी और उस सिपाही को पीटने लगे। यह देखकर छात्र भी मैदान में आ गए। छात्र और उनके अध्यापक की वीरता को देखते हुए अंग्रेज खिलाड़ी भाग गए।
मुंशी प्रेमचंद जी,बाल गंगाधर तिलक तथा गांधी जी से बहुत प्रभावित थे। युवकों में क्रांतिकारी चेतना का संचार करने के लिए उन्होंने इटली के स्वाधीनता सेनानी मैजिनी और गैरीबाल्डी तथा स्वामी विवेकानंद की जीवनी आधारित छोटी-छोटी जीवनियां लिखीं। निर्भीक प्रेमचंद जी ने अपने कमरे में क्रांतिवीर शहीद खुदीराम बोस का चित्र लगा लिया,जिसे कुछ दिन पूर्व ही फांसी दी गई थी। उन दिनों रूस में समाजवादी क्रांति हुई थी। प्रेमचंद जी के मन पर उसका भी प्रभाव पड़ा और उन्होंने अपने ‘प्रेमाश्रम’ नामक उपन्यास में उसकी प्रशंसा की थी।
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी का जन्म ग्राम लमही (वाराणसी) में ३१ जुलाई १८८० को हुआ था। घर पर उन्हें सभी सदस्य नवाब कहते थे। उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली के निकटवर्ती क्षेत्र में मुस्लिम प्रभाव के कारण बोलचाल में प्रायः लोग उर्दू का प्रयोग करते थे। इसीलिए १३ वर्ष तक वे उर्दू माध्यम से ही पढ़े। इसके बाद उन्होंने हिन्दी पढ़ना और लिखना सीखा। अब उनकी नियुक्ति हमीरपुर में जिला विद्यालय में उपनिरीक्षक के पद पर हो गई। इस दौरान उन्होंने देशभक्ति की अनेक कहानियां लिखकर उनका संकलन ‘सोजे वतन’ के नाम से प्रकाशित कराया। पुस्तक में अपना नाम ‘नवाबराय’ लिखा करते थे। जब अंग्रेज शासन को इसका पता चला तो नवाबराय को बहुत फटकारा और पुस्तक की सब प्रतियों को जब्त कर जला दिया। नवाबराय लौट तो आए पर बिना लिखे चैन नहीं पड़ता था। अतः उन्होंने अपना लेखकीय नाम ‘प्रेमचंद’ रख लिया।
प्रेमचंद जी को सिर्फ उपन्यासिक या निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी कहना भूल होगी, वे एक प्रसिद्ध उर्दू,हिंदी भाषा के लेखक के साथ-साथ एक निर्भीक समाज सुधारक, चिंतक भी रहे।
प्रेमचंद जी छुआछूत,ऊंच-नीच,जाति-भेद आदि के घोर विरोधी थे। पहली पत्नी के निधन के बाद उन्होंने बालविधवा शिवरानी से पुनर्विवाह किया,यानी मुंशी जी निर्भीक समाजसुधारक रहे।
उनकी रचनाओं में उल्लेखनीय-पंच परमेश्वर, ईदगाह,कफन इत्यादि हैं। आपके उपन्यास बाजारे हुस्न,सेवासदन,मंगलसूत्र भी लोकप्रिय रहे।

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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