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‘क्षमा’ कमजोरी नहीं, आत्म ‘अलंकार’

राधा गोयल
नई दिल्ली
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यह बिल्कुल सत्य है, कि क्षमा आत्मा का अलंकार है किंतु हर सिक्के के २ पहलू होते हैं। क्षमा करना बहुत अच्छी बात है, उससे रिश्ते मधुर बने रहते हैं लेकिन कभी-कभी हमारे शत्रु हमारे क्षमा भाव को हमारी कमजोरी भी समझ लेते हैं।

क्षमा करना सहनशीलता और सहनशक्ति की निशानी है। कमजोर व्यक्ति क्षमा करना ही नहीं जानता।शक्तिशाली ही क्षमा करना जानता है ‘क्षमा वीरस्य भूषणम।’
🔹देश या राज्यों के बीच क्षमा भावना-
कभी-कभी ऐसा भी होता है, कि कुछ लोग बार बार क्षमादान देने- सहनशीलता को कायरता की निशानी समझ लेते हैं। तब उन्हें यह समझाना बहुत जरूरी हो जाता है, कि हम केवल विनाश को टालने के लिए तुम्हें बार-बार माफ कर रहे थे। यह हमारी सहनशक्ति की पराकाष्ठा थी, ना कि हमारी कमजोरी की निशानी, लेकिन तुमने हमारी सहनशीलता को हमारी कमजोरी समझ लिया। जैसे कौरव-पांडवों के बीच हुआ था। श्री कृष्ण बार-बार संधि का प्रस्ताव लेकर गए और दुर्योधन ने इसे पांडवों की कायरता समझा। पांडवों ने उसे एक बार नहीं, अनेक बार माफ किया, पर हर बार उसने उनके माफ करने को उनकी कायरता ही समझा, उनकी महानता नहीं;उनकी सहनशीलता नहीं;उनका बड़प्पन नहीं। यदि पांडवों ने संधि प्रस्ताव रखा था तो केवल नरसंहार रोकने के लिए।आखिर कृष्ण को समझ आ गया, कि-
‘क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो
उसको क्या, जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो।
वैसे भी-
‘शांतिप्रियता रोकती केवल मनुज को।
नहीं वह रोक पाती है दुराचारी दनुज को।
दनुज क्या शिष्ट मानव को कभी पहचानता है ?
विनय को नीति कायर की सदा वह मानता है।’
कुछ अपराध ऐसे होते हैं जो अक्षम्य होते हैं। श्रीकृष्ण ने शिशुपाल के ९९ अपराध क्षमा किए। सौवें अपराध पर उसका शीश काट दिया। इसी तरह से जरासंध का साम-दाम-दंड-भेद से अंत किया और इसी तरह से कालयवन का। यदि कोई हर वक्त अन्याय करता रहे, तो अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना भी हमारा धर्म है;क्योंकि अन्याय करने वाला तो दोषी होता ही है;लेकिन अन्याय सहने वाला उससे भी बड़ा दोषी होता है। मुझे कृष्ण नीति सबसे अच्छी लगती है।
‘शठे शाठ्यम समाचरेत।’
आज फिर कलिकाल में इसी नीति को अपनाने की बहुत जरूरत है। सज्जन के साथ सज्जन रहो और दुर्जन को पहले समझाने का प्रयास करो। न समझे तो उसी की भाषा में समझा दो।
आजकल कई देशों में युद्ध की स्थिति बनी हुई है। जिस देश में अकूत खनिज भंडार हैं, दूसरा देश उस पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। कभी किसी देश में तो कभी किसी देश में युद्ध छिड़ता ही रहता है। कभी ताइवान तो कभी अफगानिस्तान और आजकल यूक्रेन और रूस, इज़राइल व हमास, भारत और पाकिस्तान। कितने ही लोग मारे जा चुके हैं, कितने ही बेघर हो गए हैं। इस स्थिति को देखते हुए आज हर देश अपने-आपको सैन्य रूप से सक्षम करना चाहता है। अपने रक्षा तंत्र को शक्तिशाली बनाना चाहता है। रक्षा उपकरणों पर अधिक से अधिक धन खर्च कर रहा है। हमारा भारत किसी पर अकारण युद्ध नहीं थोप रहा, पर कोई हमारी तरफ टेढ़ी निगाह से न देख सके, इसलिए अपनी सामरिक शक्ति बढ़ा रहा है।दुश्मन की कुटिल चाल को समझते हुए बड़ी समझदारी से उसे माफ भी कर रहा है और यह समझाने में भी कामयाब है कि भारत कमजोर नहीं है।
🔹आस-पड़ोस, सगे-सम्बन्धी-
आस-पड़ोस में कभी-कभी तकरार हो ही जाती है। समझदार व्यक्ति अपनी गलती पर फौरन क्षमा माँग लेता है और बात वहीं खत्म हो जाती है, लेकिन कई अड़ियल टट्टू ऐसे भी होते हैं जिनको पता होता है कि गलती उन्हीं की है। इसके बावजूद मानने को तैयार नहीं होते और संबंधों में दरार पैदा हो जाती है।
रिश्तेदारी में भी थोड़ी-सी गलतफहमी के कारण बहुत बड़ी दरार आ जाती है। जिसकी गलती होती है, उसे कितना भी समझाओ, अपनी गलती मानने को तैयार नहीं होता। चाहे वे भाई-भाई हों या बहन भाई अथवा पिता-पुत्र। कई भुक्तभोगी जानते होंगे।
पति-पत्नी के रिश्ते में भी ऐसा ही होता है। कब अहम इतना अधिक आड़े आ जाता है, कि या तो रोज की तू-तू, मैं-मैं या संवादहीनता की स्थिति। चाहे गलती किसी की भी हो, यदि एक चुप लगा जाए और मन से जीवनसाथी को क्षमा कर दे तो गृहस्थी बची रहती है, वरना घर टूटते देर नहीं लगती और बच्चों का जीवन बर्बाद हो जाता है। थोड़ी-सी सहनशीलता अपना ली जाए;मन से गलती को माफ कर दिया जाए तो संबंध बने रहते हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कुछ लोग सहनशीलता को कमजोरी समझ लेते हैं। तब समझाना भी बहुत जरूरी हो जाता है, कि ‘क्षमा’ हमारी कमजोरी नहीं, सहनशक्ति थी।