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गाँवों का खलिहान रो रहा

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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उत्तम खेती वाला देखो,भारत में वरदान रो रहा,
व्यापारी के भुज पाशों में,गाँवों का खलिहान रो रहा।

कृषक रंग पड़ा है पीला,नेता के गालों पर लाली,
कृषक सूना आँगन देखो,लाला के घर में हरियाली
मंडी का सौदागर हँसता,खेती का बलिदान रो रहा,
उत्तम खेती वाला देखो,भारत में वरदान रो रहा।

जब से भारत मुक्त हुआ है,आजादी ना भायी हमको,
कीमत निर्धारण की नीति,कभी रास ना आयी हमको
कर्जे के दानव से हारा,गाँव गली का मान रो रहा,
उत्तम खेती वाला देखो,भारत में वरदान रो रहा।

शहरों की कोठी हँसती हैं,देख गाँव की झोंपड़ियों को,
चिकना बदन चिढ़ाता रहता,भूखी-प्यासी अंतड़ियों को
जलती कृषक की लाशों को,देख देख शमशान रो रहा,
उत्तम खेती वाला देखो,भारत में वरदान रो रहा।

कोरी भाषणबाजी सुनते,आये हम सत्तर सालों से,
कोई ठोस उपाय न आया,ऊपर लाये जंजालों से।
सरकारी जुमले बाजी में, ‘हलधर’ का उत्थान रो रहा,
उत्तम खेती वाला देखो,भारत में वरदान रो रहा॥

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