कुल पृष्ठ दर्शन : 209

You are currently viewing गुणों और आचरण से ही आदर्श व्यक्तित्व

गुणों और आचरण से ही आदर्श व्यक्तित्व

मुकेश कुमार मोदी
बीकानेर (राजस्थान)
****************************************

मानव जीवन परिस्थितियों रूपी उतार-चढ़ाव, अनुकूलता-प्रतिकूलता का दूसरा नाम है। जीवनभर भिन्न-भिन्न मनोवृत्ति के लोगों के सम्पर्क सम्बन्ध में आने व अनेक परिस्थितियों का सामना करने के फलस्वरूप हमारा व्यक्तित्व प्रभावित होता है। कई बार हम स्वयं को विपरीत परिस्थितियों में कुशलतापूर्वक समायोजित कर लेते हैं, तो कभी-कभी नकारात्मक प्रतिक्रिया भी कर देते हैं। परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं को ना ढाल पाने की क्षमता का अभाव ही घृणित मनोभावों को जागृत कर प्रतिशोधात्मक प्रतिक्रिया करने के लिए विवश करता है। यही नकारात्मक मनोवृत्तियाँ हमारे जीवन में घातक रूप से अस्थिरता पैदा करती है।
घर-परिवार, समाज, कर्मक्षेत्र या अन्य किसी क्षेत्र में उत्पन्न विकट परिस्थितियों का शान्ति व कुशलतापूर्वक सामना करते हुए उन पर विजय प्राप्त करने के लिए सशक्त मनोबल के साथ-साथ कुछ गुण व शक्तियों की आवश्यकता होती है, लेकिन अक्सर हम सही समय पर उन्हें अपने विचार, आचरण व कर्म में उभार पाने में असमर्थ होते हैं। फलस्वरूप परिस्थितियों का प्रतिकूल प्रभाव जीवन के सभी क्षेत्रों पर कायम रहता है।
सबसे पहले यह महसूस करने की आवश्यकता है कि, किस गुण या शक्ति का अभाव हमें परिस्थितियों के सामने घुटने टेकने को विवश कर देता है और कैसे इन्हें अपने जीवन का अंग बनाया जा सकता है। प्रतिदिन समय निकालकर परिस्थितियों से हारने का कारण पहचानने का प्रयास करना चाहिए। हमें पराजित करने वाली कमजोरियों को दूर करने के लिए आध्यात्मिक बल का संचय व मानसिक सशक्तिकरण अनिवार्य है। प्रतिदिन दिव्य गुणों व सात्विक विशेषताओं से व्यक्तित्व का श्रंगार कर उन्हें अपने आचरण में प्रकट करने से समस्त दूषित मनोभावों का निर्मूलन हो जाएगा।
हर कठिन परिस्थिति में आवश्यकता अनुसार अपनी सोच को सकारात्मक बनाने का प्रयास करना चाहिए। श्रंखलाबद्ध रूप से सकारात्मक विचार उत्पन्न करने का अभ्यास करके उन्हें हमारे स्वभाव का अंग बना लेना चाहिए। यही अभ्यास आध्यात्मिक ऊर्जा का संचय करता है। जिन लोगों के साथ हमारे मधुर सम्बन्ध नहीं है, उनके साथ सद्भावना व शुभकामनाओं की शक्ति का उपयोग करना चाहिए। शुभकामनाएं करना ऐसा गुण हैं, जो हमारे स्वभाव में विनम्रता जगाकर हमें सर्व का प्रिय बनाता है। जितना-जितना गुण और शक्तियों का हम स्वयं में संचय करते हैं, उतना ही परिस्थितियों का मुकाबला करने में हम निपुण होते जाते हैं।
संसार में हर व्यक्ति का स्वभाव एक-दूसरे से भिन्न है। दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व और व्यवहार के अनुसार स्वयं को ढालना बहुत ही महत्वपूर्ण आध्यात्मिक शक्ति है, जिसकी आवश्यकता हमें जीवन के हर मोड़ पर रहती है। स्वयं को ढालने का अर्थ है परिस्थिति अनुसार या किसी विशेष प्रकार के व्यक्ति के साथ कर्म व्यवहार में आने पर व्यावहारिक तालमेल बिठाना।
मान लीजिए हमारे सही व्यवहार के बावजूद उसमें गलत ढंग से दोष निकालकर कोई हमसे नाराज है, तो ऐसे में स्वयं को सही मानने की जिद विनम्रतापूर्वक त्याग देनी चाहिए। सामने वाले के विचारों को सकारात्मक भाव से सम्मान देकर उसके अनुकूल स्वयं को बदलना एक सभ्य पुरूष के लक्षण तो हैं किन्तु अच्छे-बुरे, सही-गलत के बीच अन्तर करने और सही विचार, सही भाषा और सही कर्मों का चयन कर उन्हें व्यवहार में लाने की समझ व शक्ति भी स्वयं में जागृत होनी चाहिए। आध्यात्मिक कसौटी पर परखकर ही सामने वाले के विचारों से सहमत होना चाहिए। आध्यात्मिक बल ही विचारों को समझकर सही निर्णय लेने में मदद करता है।
जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जब एक-दूसरे की विचारधाराएं टकराती हैं, जिनका सामना करने में सक्षम ना होने पर हम आवेश में आकर नकारात्मक प्रतिक्रिया करते हैं। आध्यात्मिक सशक्तिकरण ही विपरीत परिस्थितियों व स्वभाव वाले व्यक्तियों को सहन करने का गुण जगाता है।
सबके जीवन में भिन्न-भिन्न रूपों में परिस्थितियाँ आती है, किन्तु सभी उसका सामना करने में समर्थ नहीं होते। किसी को बड़ी से बड़ी परिस्थिति भी छोटी नजर आती है और कोई छोटी-सी परिस्थिति को कठिन समझकर उससे भयभीत हो जाता है। परिस्थितियों के प्रति हमारा दृष्टिकोण ही हमें बलवान अथवा निर्बल बनाता है।
जिस प्रकार यात्रा करने के लिए जिस वाहन का उपयोग हम करते हैं, उसके समस्त कलपुर्जे ठीक होने चाहिए और सभी पहियों में निर्धारित मात्रा में हवा भरी रहनी चाहिए। उसी प्रकार जीवन के सहज संचालन हेतु पर्याप्त मनोबल, आध्यात्मिक बल व दिव्य गुणों की आवश्यकता होती है। इनमें से किसी एक का अभाव हमारी जीवन यात्रा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
इसलिए निरन्तर राजयोग-ध्यान का अभ्यास करके अन्तर्मन में जमी समस्त कमजोरियों को जड़ से मिटाकर स्वयं को सर्व दिव्य गुणों व शक्तियों से सम्पन्न बनाएं। आध्यात्मिक गुणों व शक्तियों का संचय कर उन्हें आचरण में लाने से ही आदर्श व्यक्तित्व की रचना सम्भव है।

परिचय – मुकेश कुमार मोदी का स्थाई निवास बीकानेर में है। १६ दिसम्बर १९७३ को संगरिया (राजस्थान)में जन्मे मुकेश मोदी को हिंदी व अंग्रेजी भाषा क़ा ज्ञान है। कला के राज्य राजस्थान के वासी श्री मोदी की पूर्ण शिक्षा स्नातक(वाणिज्य) है। आप सत्र न्यायालय में प्रस्तुतकार के पद पर कार्यरत होकर कविता लेखन से अपनी भावना अभिव्यक्त करते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-शब्दांचल राजस्थान की आभासी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त करना है। वेबसाइट पर १०० से अधिक कविताएं प्रदर्शित होने पर सम्मान भी मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज में नैतिक और आध्यात्मिक जीवन मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करना है। ब्रह्मकुमारीज से प्राप्त आध्यात्मिक शिक्षा आपकी प्रेरणा है, जबकि विशेषज्ञता-हिन्दी टंकण करना है। आपका जीवन लक्ष्य-समाज में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की जागृति लाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-‘हिन्दी एक अतुलनीय, सुमधुर, भावपूर्ण, आध्यात्मिक, सरल और सभ्य भाषा है।’


Leave a Reply