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घनश्याम बिन सूना सावन

धर्मेंद्र शर्मा उपाध्याय
सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
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सावन की हरियाली लगती है मनभावन,
पेड़-पौधों, जंगल में आया हो जैसे यौवन
रंग-बिरंगे फूल खिले हैं खेत-खलिहान,
फलों से लदे हैं पेड़ सभी और वृक्षों की डार।

पेड़-पौधे, जीव-जंतु, जंगल और घास,
सावन के मेघों से आज सबकी बढ़ी है आस
बड़े समय से तप्त अग्नि से घुट रही थी स्वांस,
बुझेगी प्यास, वर्षा से आई है खुशी की बहार।

सेब, आडू, चिंबल, नाशपाती,
कहीं फेगड़ा, कहीं पलम, खुरमानी
ककड़ी, घीया, कद्दू, टमाटर,
सावन में दाडू, आम ललचाए।

बिन मेघों के सावन कैसा!
बिन वर्षा के सावन सूना
ना हो हरियाली खेत-खलिहान,
बिन हरियाली सब नीरस ही जान।

मेघ बरसते जैसे चुप-चुप,
वैसे ही कृपा बरसती सब पर
मन मस्त हो भक्ति प्रभु की उपजाए,
सावन भी आग विरह की जलाए।

सावन में है मन में उमंग छाई,
प्रभु मिलन की जैसे रुत है आई।
घनश्याम बिन सूना लगता है सावन,
आकर हृदय सरोवर को कर दो पावन॥