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घर-आँगन प्रेम बरखा

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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रचना शिल्प:मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२,पदांत-रहे;सामंत-आते

छाए मेघा प्रेम की विश्वास गहराते रहे,
पात चमकीली बहारा बूंद ठहराते रहे।

क्यारियों दिल बीच एहसास के पौधे लगा,
सींच शीतल बोलियाँ फौहार बिखराते रहे।

नयन नौका पाल खोलो आंधियां अनुराग की,
ज्वार आये प्यार सागर और लहराते रहे।

पिंजरे पर नेह दाने हो भरे इतने सदा,
छोड़ उड़ने मन पँछी आकाश घबराते रहे।

सूखने पाये नमी प्रित मीत फुलवारी कभी,
झूमती खुश डाल जीवन पवन फहराते रहे।

उस घरौंदे पर कभी साया पड़े ना आज तक,
प्रेम की वट धूप गम दुख दर्द कतराते रहे।

मेह बरसे छम छमा-छम आँगना रस धार हो,
छत टिपकती प्रेम जल को द्वार हरकाते रहे॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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