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चलें प्रकृति की ओर…

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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मित्रों, इन दिनों हम यहाँ गाँव की खेती में किसानी परिवेश में प्रकृति के संग मन-मुराद जी रहे हैं। प्रकृति की लय से लय मिलाने में वाकई कितना आनंद है। यहाँ का दिन भारद्वाज, कोयलिया, मैना और चिड़ियाओं की मिली- जुली सरगम के साथ शुरू होता है। प्राची पर उठती रंगोलियाँ, रश्मि राज भास्कर का आगमन, चढ़ती धूप के साथ पाड़ों और गायों का रंभाना, चुलबुले बछड़ों का पूँछ उठाकर सरपट दौड़ते देखना… अपने-आपमें अलग विश्व की अनुभूति है।

इन दिनों नीम के वृक्षों को देखना आनंद विभोर होना है। सघन हरियाली में पल्लवित नीम के फूलों के श्वेत गजरे और कलियों का अम्बार ऐसे उमड़े है, कि बस नजर लग जाए…। श्वेत फूलों से उमड़ती खुशबू जहाँ-तहाँ रास्ता रोक लेती है। अमलतास ने पर्ण त्याग रखे हैं और वे गुलमोहर के संग मिलकर किसी बड़े उत्सव की तैयारियों में लगे हैं।
पीपल के वृक्षों के तो कहने ही क्या…! कुछ दिन पूर्व ही सभी पीपल स्वर्णिम पर्णों को त्याग अचानक नंग-धड़ँग औघड़ जैसे हो चुके थे। ऐसा लगा था जैसे जंगल में पीपलों ने सब मोह-माया त्याग दी हो। बिलकुल विरक्त… मानो, जंगल में कोई विरक्त सन्यस्थ साधु जीवन की क्षणभंगुरता समझते हुए खड़े हों। उन्हीं औघड़ पीपलों को आज देखो, तो यकीन नहीं होता कि ये वही वृक्ष हैं। पीपल नयी कोपलों और पर्ण बहार के साथ मदमाते जा रहे हैं। कोमल झिलमिलाती, लहराती और उदयमान सूरज को ओढ़कर अपनी स्वर्णिम कांति में पवन संग डोलती लाख-लाख पत्तियों ने पीपलों के बदन पर गजब ढा दिया है। सभी ननिहाल पत्तियाँ मिलकर आखातीज के गीत गाने लगी है। पीपल मनमोहक और मदन से साज-धजते जा रहे हैं।
मानव बस्तियों मे प्रदूषण की दहशत और प्रकृति में फागुन की मस्ती, जाने कैसा विरोधाभास है यह! जरूर ही आदमी ने प्रकृति की प्रताड़णा की है। कहीं प्रकृति से कोसों दूर जाने का खामियाजा तो नहीं उठा रही समस्त मानव जाति ? कुछ तो है, जो रहस्यमय भी और उतना ही गंभीर। अवकाश के इन दिनों में हम अपने गिरेबां में जरूर झांकें, शायद वक्त का यही इशारा है।
हाँ, तो भैया मैं अपनी किसानी के बारे मे बता रहा था। हमारे यहाँ इन दिनों प्याज और मक्का के भाव बढ़ने का इंतजार है। फसल बेहतरीन है, पर कम भाव के चलते किसानों के ललाटों पर चिंता की लकीरे हैं। चूंकि, इन ललाटों से बहुत पसीना बहा है और देनदारी है, तो स्वाभाविक ही है। अनार के खेतों की कटाई चल रही है। मैंने निश्चय किया है कि जितनी कटाई बची है, मैं करूंगा। इसलिए भली सुबह भिड़ जाता हूँ कटाई में। वाह! कितना आनंद है प्रकृति की गोद में। मेरे साथ २ भतीजे हैं-बहुत बातूनी और कमाल के चंचल। उनकी फुलझड़ियाँ बातों को सुनते-सुनते कटाई करता हूँ।

सूरज चढ़ता जा रहा है, माथे से पसीना तैरने लगा है। पड़ोस में प्याज के गोल-मटोल सफेद फूल, प्याज और मक्का की लहलहाती फसलों ने मानो यहाँ स्वर्ग साकार किया हो। बड़ा ही मनोरम नजारा है, तो आओ भाई, प्रकृति की गोद में आपका स्वागत है।

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।