प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
****************************************
माँ बिन…!

‘आती है तो आए पथ में सौ बाधाएं,
तू मेरे माथे पर माँ, आशीर्वाद का टीका है।’
माँ का आशीर्वाद और पिता का प्यार जिसके साथ है, वह संसार का सबसे धनवान व्यक्ति है। जब से संयुक्त परिवार घटता गया, तब से एक-दूसरे के प्रति भावनात्मक रिश्ते कम होते गए। आधुनिकीकरण आता गया, लोगों की सोच-विचार बदलते गए और भौतिक सुखों की खोज में पति-पत्नी दोनों नौकरीपेशा हो गए, जिसके चलते एक माँ अपने बच्चों को समय नहीं दे पाती, इसलिए आज बच्चों और माँ में काफी दूरियाँ बढ़ती जा रही है, एवं बच्चों का माँ के प्रति भावनात्मक लगाव कम होता जा रहा है। एक समय था, जब माँ हमेशा घर पर एक पहरेदार की तरह तैनात रहती थी। एकसाथ काफी जिम्मेदारियों को सम्भालती थी जैसे-पत्नी, बुआ, मासी, चाची, मामी, भाभी, बहन आदि ना जाने कितने रूप हैं माँ के। समय के साथ बदलते परिवेश और पाश्चात्य संस्कृति के कारण आज लोगों में काफी परिवर्तन आ गया है। आज माता-पिता दोनों बच्चों की इच्छाओं की पूर्ति के लिए नौकरी करते हैं। घर-परिवार सभी का सहयोग कर बच्चों को अच्छी शिक्षा और एक अच्छा जीवन दे सकें, इसलिए कार्य करते हैं, पर आज की युवा पीढ़ी इन सबसे परे हो रही है। उन्हें लगता है कि, माँ उन्हें प्यार नहीं करती, उन्हें समय नहीं देती। कुछ भी हो जाए, लेकिन माँ की ममता अपने बच्चों के प्रति कभी भी कम नहीं होती। बच्चे माँ को भूल सकते हैं, लेकिन माँ कभी भी बच्चों को नहीं भूलती। वह हमेशा साथ रहती है, क्योंकि माँ के बिना अपना जीवन निरर्थक है।
माँ जितना त्याग एवं बलिदान और कोई नहीं दे। आज के युवाओं को केवल ‘मातृ दिवस’ पर ही माँ को याद नहीं करना चाहिए,वरन उन्हें प्रतिदिन याद करो, उनका चरण स्पर्श करो। माँ की सेवा ही ईश्वर सेवा है। आप कितने भी बड़े देवी-देवताओं के भक्त हो, अगर माँ का सम्मान नहीं करते तो वह पूजा-पाठ-व्रत सब व्यर्थ है। माँ की ममता और आशीर्वाद में बहुत शक्ति है, वह काली है, दुर्गा है, सरस्वती है, उनका सम्मान करो। माँ के चरणों में स्वर्ग है, माँ है तो घर, घर है।