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जल ही कल का हर इक जीवन

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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जल ही कल….

जल ही कल का हर इक जीवन, जल से ही यह धरती उपवन।
अम्बर से जल बरसे तब ही, सजते हैं सारे घर-आँगन॥

जल बूंदें बन मोती सूख के, अम्बर से धरती पे गिरतीं,
बारिश में सुख लड़ियाँ बन-बन, छम-छम कर न्यारी सी झरतीं।
पर भ्रष्ट हुई मति मानव की, मिटती यह धरती उपवन-सी,
कटते वन-वृक्ष सभी अब तो, खुशियाँ मिटतीं हर जीवन की॥
जल ही कल का हर…

संसार सुखों का सागर है, हर जीवन इसमें गागर है,
पर प्यास न बुझती सागर से, जो बुझ सकती इक गागर से।
फिर भी मन चाहे सागर को, ये गागर से संतुष्ट न हो,
सागर न समाता गागर में, नहिं सजतीं खुशियाँ जीवन की॥
जल ही कल का हर…

साँसों को वायु चलाती है, तब ही पलता हर इक जीवन
मानव हाथों से कटते हैं, जो वृक्ष बनाया करें पवन।
जल-बूंद गिरे नहि मेघ बनें, शीतलता बिन तपते तन-मन,
जीवन तरसे मन चैन बिना, मिटतीं हर खुशियाँ जीवन की॥
जल ही कल का हर…

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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