बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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ओ जाड़े!
जरा बचपन की सैर करा रे,
कोहरे में बरसे कल्पनाएं
जैसे इंद्रलोक यहाँ रे।
ओ जाड़े…!
एक कम्बल संग प्रेम बांटते,
भाई-बहन में प्रेम सदा रे।
ओ जाड़े…!
सूरज निकले ठिठुर-ठिठुर,
ओस के मोती बिखर-बिखर
बटोरने अनमोल मोती,
जरा हाथ तो फैला रे।
ओ जाड़े…!
बरोसी से आग तापते,
परिवार संग रात जागते
सुकून सारा यहां रे।
ओ जाड़े…!
मेरे बचपन का,
तारों भरा गगन ला दे
खुले आँगन में,
फूलों पे ओस जमा रे।
ओ जाड़े…,
जरा बचपन की सैर करा रे॥