शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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जीवन में अंधेरा है फिर भी मजबूर हुए जीने के लिए।
अंतर को उजाला मिल जाए कुछ आने वाले पल के लिए॥
आकाश निरंतर कहता है तुम छाँव करो सारे जग पर,
रुकने का है न विकल्प कोई बढ़ते जाओ कंटक मग पर।
जीवन ही बना है ये अपना बस सिर्फ ज़हर पीने के लिए,
अंतर को उजाला मिल जाए कुछ आने वाले पल के लिए…॥
ये जग सारा ही नश्वर है रुकता ही नहीं कोई भी यहाँ,
अपना अपना किरदार निभा सब जाते छोड़ लिये सपना।
करते हैं कोशिश लोग सभी सपने पूरे करने के लिए,
अंतर को उजाला मिल जाए कुछ आने वाले पल के लिए…॥
ये चक्र समय का घूम रहा रुक जाना इसका काम नहीं,
जिस वक्त घड़ी ये रुक जाए हो जाता वक्त तमाम वहीं।
बच जाती मिट्टी सिर्फ यहाँ काँधों पर बस ढोने के लिए,
अंतर को उजाला मिल जाए कुछ आने वाले पल के लिए…॥
जब तक जीना है प्यार करो अपनत्व निभा जाओ सबसे,
जाने कब चिठ्ठी आ जाए जाना ही पड़ जाए जग से।
सारी ये उम्र पड़ी है फिर टूटे दिल को सीने के लिए,
अंतर को उजाला मिल जाए कुछ आने वाले पल के लिए…॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है