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अपना-पराया

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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नववर्ष विशेष…..

जीवन का हर दिन मैं हो जैसे नववर्ष मनाता हूँ।
दुखों को रखूँ दूर-दूर खुशियों के महल बनाता हूँ॥

धन की हानि करे सबकी हम वो नववर्ष मनायें क्यों ?
करें दिखावा दौलत का ये झूठा दर्प दिखायें क्यों ?
पश्चिम को मैं क्यों मानूँ बस गीत पुरबले गाता हूँ,
जीवन का हर दिन मैं हो जैसे नववर्ष मनाता हूँ…॥

करें कटाई धानों की अरु नई बुआई होती है,
भारत की खेतिहर जनता तब नूतन सपन संजोती है।
हैं भारत का नया साल मैं जिसके गीत सुनाता हूँ,
जीवन का हर दिन मैं हो जैसे नववर्ष मनाता हूँ..॥

चैत्र प्रतिपदा विक्रम संवत नयी उमंगों वाला दिन,
हों खुशियाँ भरपूर बिखरता नई तरंगों वाला दिन।
अपना है नववर्ष उसी दिन सबको यही बताता हूँ,
जीवन का हर दिन मैं हो जैसे नववर्ष मनाता हूँ…॥

अंग्रेजों का नया वर्ष है हमको कोई गुरेज नहीं,
सर्व धर्म के पालक हैं हम हमको भी परहेज नहीं।
अपना फिर भी अपना है मैं सबका मान बढ़ाता हूँ,
जीवन का हर दिन मैं हो जैसे नववर्ष मनाता हूँ…॥

हमें मनाना जोर शोर से सब तैयारी कर छोड़ो,
सभी बंधु हैं भारतवासी नहीं किसी से मुँह मोड़ो।
सबका साथ निभाऊँगा मैं पीठ नहीं दिखलाता हूँ,
जीवन का हर दिन मैं हो जैसे नववर्ष मनाता हूँ…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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