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जीवन का सत्य

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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जब मैं दुनिया में आया,
हुआ हताश खूब रोया
फिर किया मैंने सवाल,
कहाँ-कहाँ आया कहाँ।

सवालों की चिंता छोड़,
सभी मना रहे थे खुशी
सब ही कर रहे थे दौड़,
मुख में लिए हुए हँसी।

सबको देख मैं भी भूला,
संसारिक रंग मुझमें घुला
कहाँ से मैं क्यों कर आया,
उद्देश्य पीछे छूटता गया।

पुनः कुछ दिन के पश्चात,
हमें हुआ है फिर से ज्ञात
संसार में हैं माता-पिता,
ईश्वर स्वरूप साक्षात।

धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ,
ज्ञान मुझमें थोड़ा हुआ
गुरु से मिला मुझे ज्ञान,
लगने लगे वही महान।

फिर कैसे आया यह दौर,
स्वार्थ छोड़ न भाए और
माता-पिता,गुरु छूट गए,
इनके सपने भी मिट गए।

यहीं हो गई हमसे चूक,
स्वार्थ की लग गई भूख
बदल गया अब मेरा ज्ञान,
मान लिया स्वयं को महान।

पहुँचा जब आखिरी मोड़ पर,
सत्य का पुनः हमें हुआ भान
कैसे-कैसे भटक गया था ज्ञान,
मन में माता-पिता गुरु भगवान।

अब चाहा गलती सुधार लूँ,
कर्म से परलोक संवार लूँ
पर समय बचा न अब थोड़ा,
यमलोक से लेने आया घोड़ा।

कहता ‘राजू’ सुनो ध्यान लगा,
अभी से सभी सतकर्म कर
माता-पिता गुरु ज्ञान को धर,
तीनों ही लोक जाएंगे सुधर।

सँवारना हो अगर भविष्य,
जान लो सभी यह रहस्य।
यही है जीवन का सत्य,
यही है जीवन का सत्य॥

परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

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