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जनसैलाब

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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परिवार फटेहाल,सुविधा से
वंचित गर्भवती,पत्नी साथ।
घर पहुंचने की,इच्छा ने,
प्राण को भी,दांव पर लगाया साथ॥

बीच राह में,कहीं छाँव तले,
बैठ ढूँढते कोई,मदद सहारा।
कभी किसी ने कहीं,पानी भोजन,
दिया जिंदा रहने,का मिला सहारा॥

आसमां देता,कड़ी धूप व आंधी,
पसीने,श्रम से तरबतर ।
आँसू पोंछते,भाग्य को कोसते,
किसी मदद की बांट,देखते सभी मजबूर॥

सूख गए नैन,अश्रु बहाते,
ना आँसू शेष,ना कोई आस।
सायकिल चलाते,शक्ति आजमाते,
फिर भी मंजिल,नहीं दिखती पास॥

परदेश जाकर मजदूर,करते रहे काम,
‘कोरोना’ विषाणु,ने ऐसा डराया।
धैर्य खोया,अपनों को जिंदा रखने,
की आस में,मौत को गले लगाया॥

सामान सिर पर,मासूम बच्चों की,
उंगली पकड़,भूखे प्यासे चलता जनसैलाब।
पैदल चलता,उखड़ी साँसों के साथ,
पीछे मुड़ ना देखता,कोई भी जनसैलाब॥

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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