सौ. निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर (राजस्थान)
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कल-कल करती धारा,
बहे देखो! ये धारा
धरा पर इसका मतलब क्या,
शीतल, तन और कंठ को तृप्त करे।
झर-झर बहती धारा,
हिमालय से कन्याकुमारी तक
भिन्न-भिन्न निकले धारा,
इसको कहते ‘सहस्त्रधारा।’
टप-टप बूँदों का शोर,
तेज हवा और तेरा रूप।
जीवन है बिना तेरे अधूरा,
स्वर-ध्वनि में अस्तित्व है तेरा॥