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ज्ञान और चेतना का पर्व ‘वसंत पंचमी’

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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वसंत पंचमी:ज्ञान,कला और संस्कृति का उत्सव…

वसंत पंचमी एक नए साल का प्रतीक है, जो नए ज्ञान प्राप्त करने की खुशी लाता है। इसलिए इस दिन ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। भारतीय किसान इसे अपने कृषि मौसम की शुरूआत के रूप में मनाते हैं, इस शुभ दिन पर अपने खेतों को फसल के लिए तैयार करते हैं।बसंत पंचमी का मतलब है, वसंत ऋतु का आगमन। यह दिन ज्ञान, कला, और शिक्षा की देवी माँ सरस्वती को समर्पित है। इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है। यह त्योहार मनाने की वजह यह है कि इस दिन माँ सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करने से ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
कहा जाता है कि इसी दिन कामदेव मदन का जन्म हुआ था। लोगों का दांपत्य जीवन सुखमय हो, इसके लिए लोग रतिमदन की पूजा और प्रार्थना करते हैं। इस दिन को लक्ष्मी जी का जन्मदिन भी माना जाता है; इसलिए इस तिथि को ‘श्री पंचमी’ भी कहा जाता है। ब्राह्मण शास्त्रों के अनुसार, वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और सभी देवताओं की प्रतिनिधि हैं। अमित तेजस्विनी और अनंत गुण शालिनी देवी सरस्वती की पूजा और आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित है। इस दिन को देवी के रहस्योद्घाटन का दिन माना जाता है।
बसंत पंचमी का महत्व प्राचीन काल से चला आ रहा है। यह पर्व प्रकृति के नवजीवन और सृजनशीलता को दर्शाता है। पंचमी के दिन देवी सरस्वती देवी की उपासना की जाती है। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की पूजा व्यक्तिगत रूप से करने का वर्णन है, लेकिन वर्तमान में सार्वजनिक पूजा स्थलों पर देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने की प्रथा शुरू हुई है। विद्यारम्भ संस्कार के लिए यह सबसे अच्छा दिन है। पुराणों में भी वसंत पंचमी को मुख्य रूप से नई शिक्षा और गृह प्रवेश के लिए बहुत ही शुभ माना गया है।

भक्त इस दिन गीत, संगीत और नृत्य कर उत्सव मनाते हैं। इस दिन का उद्देश्य, सृष्टि में नव चेतना और नव निर्माण के कारण हुए आनंद को व्यक्त करना व आनंदित होना है। वसंत पंचमी का कृषि संस्कृति से संबंध है, ऐसा ध्यान में आता है। इस दिन ‘नवान्न इष्टी’ एक छोटा यज्ञ किया जाता है। इस दिन खेतों में उगाई गई नई फसल को घर में लाया जाता है और भगवान को अर्पित किया जाता है। राजस्थान, मथुरा तथा वृंदावन में इस दिन विशेष त्यौहार मनाए जाते हैं। इस दिन गणपति, इंद्र, शिव और सूर्यदेव से प्रार्थना भी की जाती है। वसंत ऋतु में वृक्षों में नए पल्लव आते हैं। प्रकृति के इस बदलते स्वरूप के कारण मनुष्य उत्साही और प्रसन्नचित्त हो जाता है। यह पर्व संक्रमण का प्रतीक है।

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।