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तुम आ जाओ तो…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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तुम आ जाओ तो जड़ स्पंदन हो जाए,
धरती बंजर खुश हो गुलशन हो जाए
देख कहीं देर करोगे तुम तो फिर ये,
साँसों से मेरी ना अनबन हो जाए।

उलझन से मन चिंता सुलझन हो जाए,
भाव भरी पादप सींचे सावन हो जाए
कहते सब च्यवनप्राश महक तेरी,
सुन बुझती धड़कन का यौवन हो जाए।

सुमरन से सोचे में दर्शन हो जाए,
क्रंदन रूदन बदले वंदन हो जाए
देखे आँखें पर बोल न सकती कुछ भी,
होंठों पर क्यों ना चितवन हो जाए।

बंधन जोड़ा तो क्यों विघटन हो जाए,
युग्मन की आशा है उन्मन हो जाए
स्पर्श तेरा प्रणयम जीवन पारस है,
लोहे का मेरा तन कुंदन हो जाए।

घर ये तेरा उपवन नन्दन हो जाए,
मधुबन बन पावन वृंदावन हो जाए
तेरी दुल्हन तकती रहती अपलक पथ,
नैन खुले पलकों का चिलमन हो जाए।

सुन साजन तेरा निर्देशन हो जाए,
ये तन हल्दी उबटन चंदन हो जाए।
मंथन कर दामन पर अब इस जोगन के,
क्या दोगे उद्बोधन फौरन हो जाए॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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