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तूने किया नहीं है न्याय

रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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नारी-
यह कैसा अन्याय है प्रभुवर,
यह कैसा अन्याय
देकर कोमल काया तूने,
किया नहीं है न्याय
तूने किया नहीं है न्याय।

प्रभु-
प्रस्तर सम धरती न कभी,
जानो बीज है उगाती
कोमल काया तेरी है,
तभी तू जननी का सुख पाती।

नारी-
क्यों हमको ही प्रभुवर,
है बंधन में रहना पड़ता
सामाजिक मर्यादाओं को,
हमको ही सहना पड़ता।

प्रभु-
मर्यादित जन ही इस जग में,
पुरुषोत्तम राम कहलाता है
तुमको देकर कोमल काया,
मर्यादा का काज निभाया है।

नारी-
बलिदान सदा से करती आयी,
हम नारियाँ निज परिवार हित
फिर भी बलिदानों की गाथा में,
नहीं है अपना कोई औचित्य।

प्रभु-
तुम्हारा मौन बलिदान ही जानो,
सबसे है सर्वश्रेष्ठ
पुरूष समाज की तुम अंगरक्षक,
तुम्हीं तो हो कुलश्रेष्ठ
फिर भी तेरे बलिदानों की,
गाथा इतिहास दोहराता है
पन्ना धाय एंव वीरांगनाओं की,
गाथा यह सुनाता है।

नारी-
हौंसलों में भरकर रंग,
हमारी भावनाओं को दिए पंख
पर क्यों समाज ने कतर डाले,
मेरे उगते ये नवल पंख।

प्रभु
हौंसलों के जो पंख न होते,
दारुण दुःख तुम सह न पाती
दुर्योधन जैसे बैरी से,
तुम मुकाबला कर न पाती
तुम्हारे ही हौंसलों ने एक,
नया मुकाम बनाया है
आसमान तक परचम लहरा कर,
अपना नाम कमाया है
अब भी क्या तुमको शक है,
मैंने किया अन्याय !
तुम न होती तो सृष्टि न होती,
न होता कोई पुरूष पर्याय
एक ऐसी धुरी हो तुम,
तुम बिन संसार वीराना है।
नर व नारी एक ही हो तुम,
फिर किसको तुम्हें हराना है॥

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