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तेरी जय हो माँ

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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तूने अपना नूर गंवाया,
तब जा के हमें सृजाया
पीड़ा सह कर हमें उत्पाया,
अपना दर्द सब अंदर छुपाया।
तेरी जय हो माँ।

मल-मूत्र से हमें बचाया,
अपने मुँह का हमें खिलाया
उंगली पकड़ कर चलना सिखाया,
तोतली जुबां को बतियाना बताया
अपना दर्द सब अंदर छुपाया।
तेरी जय हो माँ

पाला-पोसा बड़ा बनाया,
सर्दी में गर्मी दी, धूप में छाया
लकड़ी-सी सुखा दी अपनी काया,
अरमान कुचल निज हमें पढ़ाया
हमारी गलती पर भी हमें न सताया,
अपना दर्द सब अंदर छुपाया।
तेरी जय हो माँ।

हांफते-कांपते तुझे वृद्धा-आश्रम पहुंचाया,
हमने जोरू संग गुलछर्रा उड़ाया
बलिदान तेरा कभी याद न आया,
कितना कर खाती वह बूढ़ी काया ?
तुझमें तो है करूणा सिंधु समाया,
सबके बाबजूद भी कुछ न बताया
अपना दर्द सब अंदर छुपाया।
तेरी जय हो माँ।

हम ढीठ हैं, एहसान फरामोश,
हमें रहा न बचपन का होश
तूने कैसे बड़ा किया था, हमें पाल-पोष,
कोई हमें गड़ाता निगाहें था तो,
दिखाती थी तू कैसा जोश ?
जोरू की तिरेरी से ही डर गए हम,
है बड़ा ही यह अफसोस।
तू है कि अपने दर्द को,
रही है अंदर ही अंदर माँ मसोस।
तेरी जय हो माँ…॥

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