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सरस्वती वंदना

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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हे मात शारदा तू मुझ पर,इतनी-सी अनुकंपा कर दे।
वाणी से जग को जीत सकूँ,मेरे गीतों में लय भर दे॥

शब्दों छंदों का भिक्षुक हूँ,मैं मांग रहा कुछ और नहीं,
जाने कब साँस उखड़ जाए,जीवन की कोई ठौर नहीं।
मेरी छोटी-सी चाह यही,धन-दौलत की परवाह नहीं,
इस शब्द सिंधु को पार करूँ,उन्मुक्त कल्पना को पर दे॥
हे मात शारदा तू मुझ पर इतनी-सी अनुकंपा कर दे…

कलियों के हार बनाये हैं,तुझको पहनाने को मैया,
फूलों से रस खिंचवाये हैं,तुझको नहलाने को मैया।
खिड़की दरवाजे छंद कहें,दीवारें गीत ग़ज़ल गायें,
तुलसी की चौपाई गूँजें,ऐसा मुझको सुरभित घर दे॥
हे मात शारदा तू मुझ पर इतनी-सी अनुकंपा कर दे…

काया ये माटी का पुतला,मानव या पशु में अंतर क्या,
वाणी बिन पता नहीं चलता,गाली या जंतर-मंतर क्या।
पूरी अब खोज करो मैया,वाणी में ओज भरो मैया,
गूंजूं मैं दसों दिशाओं में,मैया मुझको ऐसा स्वर दे॥
हे मात शारदा तू मुझ पर इतनी सी अनुकंपा कर दे…

‘दिनकर’ जैसा कुछ लिख पाऊँ’मुझको वरदान यही देना,
जन गण के द्वंद्व गीत गाऊँ,मुझको अनुमान सही देना।
तेरे चरणों में बिछ जाऊँ,धरती से नभ को खिंच जाऊँ,
दुनिया में गीत अमर होवें, ‘हलधर’ को कुछ ऐसा वर दे॥
हे मात शारदा तू मुझ पर,इतनी-सी अनुकंपा कर दे…

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