राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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चल-चल राही थकना नहीं है,
मन को न घबराने दे
मंजिल दूर है दूर सही,
बाधाएं आती है,आने दे।
तप-तप के सोना है चमकता,
जीवन संघर्षों से निखारता
हार मान ना,चलते जाना,
छाले पड़ेंगे,पड़ जाने दे।
दूर है मंजिल…
जग की है ये रीत निराली,
चढ़ते सूरज को करें नमन
तू हौंसले से बढ़ा कदम,
श्रम-स्वेद गिरे,गिर जाने दे।
दूर है मंजिल…
लगन की डगर पर तू चलेगा,
लक्ष्य तभी तुझको मिलेगा
जीवन है ये एक तपस्या,
स्वयं को जला,जल जाने दे।
दूर है मंजिल…
राह में तेरी फूल खिलेंगें,
शूल-वूल सब दूर हटेंगें
ईश्वर पर भरोसा रख ले,
उसकी कृपा हो जाने दे।
दूर है मंजिल…
देख भविष्य के सपने कोमल,
भूत ने तुझको दिया है क्या ?
वर्तमान तो सुखद से जी ले,
जो बीत गया,जा-जाने दे।
मंजिल दूर है,दूर सही,
बाधाएं आतीं है,आने दे॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।