हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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दशानन रावण का दर्द ऐसा है, जिसे वह बोलता है कि "मुझे हर साल क्यों खड़ा कर देते हैं जलाने के लिए। संसार में भी तो अधर्म की सत्ता का व पाप का घड़ा भरता जा रहा है। अति का नतीजा भी तो बुराई का प्रतीक ही है। हर एक दशहरे पर फिर भगवान मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम द्वारा बुराई का यह रावण जलाया जाता है, लेकिन इस बार तो मेरे साथ अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी साथ आ रहे हैं। मैंने उनसे कहा कि आप तो राम नाम सुखदाई का पाठ पढ़ने वाले सत्य अहिंसा के पक्षधर हो, तो बताएं कि हर साल मुझे यानी रावण को मारना अच्छा लगता है क्या इन लोगों को ?"
गांधी जी बोलते हैं कि "नहीं दशानन आप तो यहाँ हर साल थोड़े-थोड़े अमृत्व की चाह में बार- बार आ ही जाते हो, पर लोगों के अंदर की माया, मोह, घमंड, क्रोध, लोभ आदि की कषाय बहुत बढ़ती जाती है। इसलिए आपके पुतले रूपी बुराइयों का दहन हर वर्ष करते हैं।"
तभी तो प्रकांड विद्वान रावण अपनी बात कहने में पीछे नहीं रहता है। इस बार वह फिर पुतलों के मध्यम से खड़ा है। हर वर्ष वह विद्वान कुछ ना कुछ संदेश जरूर देता है। इस बार वह कह रहा है कि इस वर्तमान आधुनिक युग में आप लोग इतने नास्तिक कैसे हो गए ? वर्तमान समय में धर्म-कर्म की धारा पर कलयुगी युग के पाप का यह रूप बहुत ही भयानक हो रहा है। कब समझोगे सच्चाई की बात कि जब मुझ जैसा दानव अपनी सत्ता नहीं चला पाया, तो पापी, राक्षस व दानव के साथ आप किस तरह चलाओगे ?"
इसी बीच बापू कहते हैं- "रावण आप हमें ज्ञान मत दो। यहाँ सब बहुत ज्ञानी हैं।"
महात्मा गांधी की बात सुनकर रावण अट्टहास करता है। फिर बोलता है, "अरे आप इस तरह अज्ञानियों की तरह वार्तालाप क्यों कर रहे हो। मनुष्य इतना होशियार कब बन गया, जबकि सभी प्राणी भटके हुए हैं और आजकल तो जेन- जी का बोलबाला है। वर्तमान समय में तो गूगल ज्ञान की बात करना ठीक नहीं है। डिजिटल युग में मोबाइल के आदी लोग लंका के राजा रावण से बात कर रहे हैं। मैं सब जानता हूँ, क्या-क्या हेराफेरी व गोलमाल चलता है धरती पर। मैं ऐसे ही नहीं हर साल आ खड़ा हो जाता हूँ। मैं भी त्रिकालदर्शी हूँ।"
रावण की ललकार सुनकर महात्मा गांधी दूर चले जाते हैं। इसी बीच रावण दहन कार्यक्रम शुरू होता है और राजनेताओं का जमावड़ा बढ़ने लगता है। बड़े-बड़े सफेदपोश व्यक्ति राजनेता उपस्थित हो चुके हैं। मेरे पास लगे मंच पर संचालक महोदय कार्यक्रम में आए हुए अतिथियों के बारे में बताते हैं। अध्यक्षता के पटपुरुष रत्नों में रत्न है, तो मुख्य अतिथि न्याय के पटाधीश जो अब सफेदी से सफेद हो चुके हैं, वह उपस्थित हो गए हैं। संचालनकर्ता के बोल-वचन के साथ थोड़ी-थोड़ी देर में अनार, राकेट, चकरी और पटाखे जलाए जाते हैं। आसमान में रोशनी से जगमगाए रावण के दहन स्थल पर माहौल बन रहा था। इसे देख फिर रावण मुस्कराते हुए अट्टहास करता है और बोलता है "वाह रे दुनिया वालों, अपने अन्तर्मन की बुराईयों को जो नहीं मिटा पाए, वह यहाँ मुझे जलाने आए हैं ? में इसी तरह हर साल खड़ा हो सोचता हूँ, कब अवतारी आएंगे धरती के पाप का अंत करने…? हे प्रभु राम, आज चारों ओर पाप बढ़ रहा है। अब आपको आना ही होगा। हजारों द्रोपदी अपनी लाज की रक्षा के लिए चक्रधारी तीनों लोक के ईश्वर का अवगाहन कर रही है। धरती पर पाप का प्रभाव बढ़ गया है, लोग चोरी-फरेब-झूठ-लालच की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। उन्हें इस बंधन से मुक्ति के लिए श्रीराम आपको आना ही होगा। जिस प्रकार मेरे कर्म का फल अमर होने के बावजूद आपने न्याय पूर्वक न्याय किया था और आज तक आप दशहरे पर मुझे मारते हो, उसी प्रकार धरती पर इन मनुष्यों की भी बुराइयों का दहन करो। इसके बाद अब वह घड़ी आ ही गई है, जब मेरे पापों का झरन करके और रावण को मारकर पूरी दुनिया में दशहरे की खुशियाँ मनाई जाएगी। मुझे तो हर साल यूँ ही खड़े रहकर भटकते रहना है। धरतीवासियों को सच्चाई की राह दिखानी ही होगी। अगर नहीं दिखा पाया तो मेरे जैसा हाल यानी बुराईयों का नतीजा ऐसा ना हो। हर बार बुराई का प्रतीक मुझे जलाते रहो, पर कहीं आपको भी इसी प्रकार जलना नहीं पड़े ? ध्यान रखिए कि नकारात्मक विचारों और उसके पक्ष से हमेशा नुकसान ही होता है, इसलिए हमेशा सच्चाई व सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहें और खुशियों का यह उल्लास हमेशा बना रहे।