हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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१२ मात्रा प्रति चरण…
जीवन है इक नदिया, सुख-दु:ख दो तट इसके,
नदिया के साथ रहें, पर अलग-अलग बहते।
संसार सुनहरा है, जीवन प्रभु की रचना,
नदियों से सृष्टि सजे,खूबी का क्या कहना।
रे मन तू कर्म सजा, भगवान इशारा दें,
बस देख ले सृष्टि को, तट पर ही घाट सजें।
भवसागर में जीवन, ‘नद’ मिले समंदर से,
ये अंग अनंत बने, ‘दाता जो देन करें।’
मन कर्म सजा रखना, जैसा भी वक्त बने,
सम्मान किया करना, ‘दाता जो देन करें॥’
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।