संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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देह घड़ा कुम्हार-सा
माटी गूंथ बनाया,
शून्य इस विराट में
एक छोटा वृत्त समाया।
माटी की दीवारें दी
मध्य रिक्त स्थान आया,
जल समान मन दिया
फिर खालीपन न पाया।
मन रंगा जीवन रंगों से
हर रंग जल सा समाया,
इच्छा, चाहत, वासना
रंग इनके वो भरमाया।
त्यागे शीतलता घड़ा
जीर्ण-शीर्ण अवस्था में,
जल रिसाव-सी वासना
तब, सब कुछ रिसता पाया।
माटी हुई फिर से माटी
शून्य, शून्य में समाया।
फिर से, देह छोटा शून्य,
विराट शून्य में समाया॥