राकेश सैन
जालंधर(पंजाब)
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इन दिनों राजनीतिक हिंसा से पीड़ित २ राज्यों में विपरीत प्रकृति के समाचार सुनने को मिले। एक राज्य में कुल्हाड़ी पर पाँव मारा जा रहा है तो दूसरे में इसी तरह के प्रयासों से जख्मी हुए पैरों पर मरहम-पट्टी के प्रयास हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल के सिंगुर में भूमि अधिग्रहण विरोधी आन्दोलन के कारण वहां से अपनी नैनो कार परियोजना को बाहर ले जाने के लिए मजबूर होने के १३ साल बाद टाटा समूह पर बंगाल सरकार प्रेम के डोरे डाल रही है। राज्य के उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्री के अनुसार टाटा के साथ बंगाल में बड़े निवेश के लिए बातचीत चल रही है। दूसरी तरफ,पंजाब में अडानी समूह ने आईसीडी लोजिस्टिक पार्क व रिलायंस कम्पनी ने अपना आऊटलेट बन्द कर दिया है। राज्य में निरंकुश किसान आन्दोलन और इसको लेकर राज्य की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस द्वारा की जा रही राजनीति के चलते देश के २ औद्योगिक घरानों को यह कदम उठाना पड़ा। उक्त फैसले से राज्य में सैंकड़ों युवाओं को तत्काल रोजगार से हाथ धोना पड़ा है और साथ में अरबों रुपए के राजस्व की हानि का अनुमान है। केवल इतना ही नहीं,बड़े घरानों के इस कदम से राज्य के अन्य उद्योगों पर भी अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है और नए उद्योगों की सम्भावना पर फिलहाल अल्पविराम लगता दिख रहा है। जिस हिंसा और नक्सलवाद ने उद्योग व व्यापार की दृष्टि से बंगाल का भट्ठा बैठाया,उसी की काली छाया पंजाब पर भी पडऩे लगी है।
अगर कोई शोधार्थी यह जानना चाहे कि अपने मानव संसाधनों को किस तरह नष्ट किया जाता है,तो बंगाल से बेहतर कोई उदाहरण नहीं। अंग्रेजों के भारतीय उद्योगों को समाप्त करने के सभी प्रयासों के बावजूूद स्वतन्त्रता प्राप्ति तक बंगाल देश का अग्रणी औद्योगिक राज्य रहा,लेकिन धीरे-धीरे वामपन्थियों के प्रभाव से हिंसा ने यहां की राजनीति में अपना स्थान बनाना शुरू कर दिया। १९५३ में ट्राम भाड़ा १ पैसा बढ़ाए जाने के विरोध में भड़की हिंसा में कई ट्राम आग के हवाले कर दी गईं। इसके बाद यहां यही सब चलता रहा और १९७२ में अचानक हालात बदले और राजनीति में आपराधिक तत्वों का प्रवेश होने लगा। देश के अन्य हिस्सों से वहां निवेश करने वाले उद्योगपतियों व व्यवसाइयों को हिन्दीभाषी बता कर उनका विरोध किया जाने लगा। वामपन्थियों ने अपने शासनकाल में उद्योगपतियों व व्यापारियों का जीवन इतना दुश्वार कर दिया कि उनमें से अधिकतर ने अपना कामकाज समेट कर पलायन करना पड़ा। नक्सलवाद,माओवाद,काल्पनिक बुर्जुआ वर्ग की सत्ता के सिद्धान्त आदि ने उद्योगों का अन्त कर दिया। वामपन्थियों को भी अपनी गलती का एहसास हुआ और बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार ने उद्योग व व्यापार को प्रोत्साहन देने की बात कही, लेकिन उनसे गलती हुई। उन्होंने जिस हिंसक मार्ग से उद्योगों को भगाया,अब उसी खून-खराबे से औद्योगीकरण का प्रयास करने लगे। सिंगुर में टाटा की लखटकिया नैनो कार परियोजना के लिए यही कुछ हुआ और भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों का खून बहाया गया। टाटा को अपनी परियोजना गुजरात ले जानी पड़ी।
केन्द्र सरकार द्वारा पारित ३ कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब में किसानों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन के चलते अडानी समूह ने लुधियाना के पास किलारायपुर स्थित अपने आईसीडी परिचालन को बन्द करने का निर्णय लिया। प्रदेश में पहली बार किसी उद्योग ने न्यायालय में याचिका दायर करके अपने अधिकारों के हनन का हवाला दे कर कहा कि वो अपना व्यापार बन्द कर रहे हैं। समूह ने लोजिस्टिक्स पार्क बन्द करने का निर्णय लेते पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय में शपथ-पत्र दाखिल कर कहा कि राज्य सरकार और न्यायालय दोनों की तरफ से उसे पिछले ७ महीने में कोई भी राहत नहीं मिली,जिसके चलते वो अब और नुकसान उठाने की परिस्थिति में नहीं है। समूह ने आईसीडी की शुरुआत २०१७ में की थी। इसका उद्देश्य था-लुधियाना और पंजाब में अन्य जगहों पर स्थित उद्योगों को रेल तथा सडक़ मार्ग से परिवहन की सुविधा प्रदान करना। यहाँ कामकाज ठप है।
कुल आर्थिक असर के रूप में लगभग ७ हजार करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होगा।
पंजाब के बाकी उद्योगों को भी लाजिस्टिक्स पार्क के बन्द होने से बड़ा झटका लगा है। दरअसल,बन्दरगाह से दूरी और भूमि से घिरा सीमान्त राज्य होने के चलते पंजाब के उद्योगों का तैयार माल दूसरे देशों व राज्यों को भेजना सबसे बड़ी चुनौती है। माल जल्दी और कम लागत में भेजना हर उद्योगपति की प्राथमिकता रहती है। कच्चा माल लाने से लेकर निर्यात के लिए समय पर सामग्री पहुंचाने के लिए कई दिन लग जाते हैं। अडानी समूह के पास खुद के यार्ड और जहाज हैं। इससे व्यापार में तेजी आई थी और उद्योगों को इससे काफी राहत मिल रही थी।
पंजाब से कबाड़,मशीनरी,मेवा,कागज-रद्दी कागज, ऊनी सामान,साईकिल,चमड़े का सामान सहित कई अहम उत्पाद आयात-निर्यात के लिए आते-जाते थे। इसी आन्दोलन से परेशान हो रिलायंस कम्पनी ने भी अपना आऊटलेट बन्द कर दिया,जिससे सैंकड़ों लोगों के रोजगार प्रभावित हुए हैं।
भ्रामक तथ्यों पर राजनीति करने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं,उसके ताजा उदाहरण हैं पंजाब के यह घटनाक्रम। किसान नेताओं,उनकी देखा-देखी राजनेताओं ने जिस तरह इस झूठ का प्रचार प्रसार किया कि,केन्द्र सरकार केवल २ औद्योगिक घरानों को खुश करने के लिए उक्त कृषि सुधार कानून लाई है तो आन्दोलनकारियों में इन कम्पनियों को लेकर गलत धारणाएं पैदा होनी शुरू हो गईं। इसका परिणाम हुआ कि राज्य सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी आज पंजाब में कोई नया उद्योग आने को तैयार नहीं। राज्य के मुख्यमन्त्री खुद स्वीकार कर चुके हैं कि,ऐसे वातावरण में राज्य में लगभग ६० से ८० हजार करोड़ तक का पूञ्जी निवेश अधर में लटक गया है। राज्य में महंगी बिजली, प्रशासन में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार,लेट-लतीफी,कमजोर आधारभूत ढाञ्चे के चलते पहले ही यहां से उद्योग पलायन की तैयारी कर रहे थे और अब बड़े औद्योगिक समूह के कारोबार समेटने से उद्योगों में पलायन की गति और तेज होने की आशंका है। इसका विपरीत असर केवल पंजाब ही नहीं,बल्कि देश में रोजगार के अवसरों, पूञ्जीनिवेश,सकल घरेलू उत्पादन पर पड़ना भी अवश्यम्भावी है। जिन वामपन्थियों व हिंसक तत्वों ने बंगाल को औद्योगिक रूप से बर्बाद किया,अब उनकी शनिदृष्टि किसान आन्दोलन के नाम पर पंजाब को ग्रसने लगी है। पंजाब के लोगों को बंगाल से सबक ले अपने फैसले लेने होंगे।