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पटना उच्च न्याया. का फैसला हिंदी में आना शुरू

जनभाषा में न्याय की ओर एक और कदम..

उत्तर प्रदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तरह बिहार, राजस्थान और मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालयों में भी अंग्रेजी के अतिरिक्त हिंदी के प्रयोग का प्रावधान है, लेकिन जहाँ इलाहाबाद उच्च न्याया. में लंबे समय से हिंदी में निर्णय दिए जाते रहे हैं, वहीं बिहार में कदम-कदम पर इसके लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश भी जनभाषा में न्याय के समर्थन की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल और भारत सरकार के प्रयासों से इलाहाबाद उच्च न्यायालय तथा कई उच्च न्यायालयों की वेबसाइट पर राज्य की भाषा में निर्णयों का अनुवाद दिया जाने लगा है। बार कौंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्र भी जनभाषा में न्याय के प्रबल समर्थक हैं। पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद सहित अनेक अधिवक्ता भी लंबे लमय से इसके लिए आन्दोलनरत हैं। इसके लिए अदालत में एक
न्यायायाधीश से उनकी बहस का वीडियो भी काफी प्रसारित हुआ था। फिर भी अंग्रेजीपरस्तों के वर्चस्व के चलते बाधाएँ बनी हुई हैं।
इस बीच उच्च न्याया. पटना के न्यायमूर्ति डॉ. अंशुमान का एक निर्णय अंधकार में रोशनी बनकर आया। न्यायमूर्ति डॉ. अंशुमान ने भारत के नागरिक विशाल कुमार के नियमित जमानत-पत्र की सुनवाई पूर्ण होते ही हिंदी समर्थक उनके विद्वान अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद से मुस्कुराते हुए पूछा कि क्या हिंदी आवेदन पर हिंदी में आदेश लिखवा दें ? इस पर अधिवक्ता बोले कि, यदि हिंदी में आदेश आएगा तो लोगों को आजादी की सी खुशी मिलेगी। अंग्रेजी नहीं समझने वाले देशवासियों की उदासी सदा के लिए समाप्त हो जाएगी, जिसके परिप्रेक्ष्य में न्यायमूर्ति ने जैसे ही हिंदी में आदेश लिखवाना शुरू किया, उनके आशुलिपिक को उनके आदेश लिखने में बहुत कठिनाई होने लगी और तब न्यायमूर्ति बोले कि, जो आशुलिपिक हिंदी में आदेश लिख सकता हो, उनको बुलाओ। उनके आदेशानुसार हिंदी आशुलिपिक को बुलाया गया और आने पर उन्होंने खुली अदालत में हिंदी में आदेश लिखवा दिया। जिस मामले में हिंदी में आदेश पारित हुआ, वह मामला न्यायालय में ११/१०/२०२३ को क्रम संख्या-५९ पर लगा हुआ था।
अब जबकि एक शुरुआत हुई है तो, आशा है कि पटना उच्च न्यायालय में आगे भी हिंदी में निर्णय दिए जाने का सिलसिला जारी रहेगा, लेकिन इसके लिए अधिवक्ताओं को और अधिक प्रयास करने होंगे। राज्य सरकार का भी दायित्व है कि, जनहित में सरकारी वाद हिंदी में रखवाए जाएँ और अदालत में इसके लिए सभी व्यवस्था की जाएँ।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)