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निराकार साकार प्रभु

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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निराकार साकार प्रभु, गुण निर्गुण अस्तित्व।
भजे मनुज जिस रूप में, दिखे ईश व्यक्तित्व॥

लीलाधर लीला मधुर, सगुण रूप साकार।
नर-नारी बहु रूप में, लेते हैं अवतार॥

निराका परमात्मा, अन्तर्मन अनुभूत

गाओ जिस भी रूप में, भक्ति प्रेम सम्पूत॥

ब्रह्म विष्णु शिव एक ही, हैं त्रिदेव अवतार।
सर्जन पालन सत्य जग, पापों का संहार॥

त्रिविध शक्ति माया जगत, विद्या वैभव शक्ति।
सरस्वती लक्ष्मी उमा, नवदुर्गा नवभक्ति॥

निर्गुण आलोकित हृदय, चारु रूप भगवान।
अच्युत नारायण जगत, शिव मंगल विधि मान॥

ज्ञान कर्म पथ अरुणिमा, योगक्षेम आलोक।
पद त्रिदेव भज ले मनुज, मिटे पाप तम शोक॥

गरुडासन वैकुण्ठ हरि, ब्रह्मलोक विधिलेख।
महादेव कैलाश में, भजो हृदय प्रभु देख॥

भक्ति प्रेम सेवा अपर, खुशियाँ भरो उदास।
मीत बनो पर वेदना, समझें हरि का वास॥

सदाचार जीवन चरित, संस्कार सद्रीति।
मातृभूमि अनुरक्ति मन, समझें ईश्वर प्रीत॥

रखो ईश विश्वास मन, विविध रूप हरिनाम।
कर्मयोग सद्ज्ञान से, हरि दर्शन अभिराम॥

शील त्याग गुण कर्म से, मिले भक्ति अनुरक्ति।
परहित पौरुष हरि मिले, तज भौतिक आशक्ति॥

निराकार परब्रह्म प्रभु, करो मूर्त साकार।
शरणागतवत्सल प्रभो, कर भवसागर पार॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥