पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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शिवि मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करती थी। वह अपने बॉस रुद्र को पहली नजर में ही पसंद करने लगी थी। कॉफी के प्यालों के साथ दोनों के बीच में नजदीकियाँ बढ़ती गई। लगभग २ साल तक मिलना-जुलना, घूमना-फिरना ‘आई लव यू’ तक पहुंच गया और किन्हीं कमजोर पलों में दोनों अपना होश खो बैठे…। वहाँ तक तो ठीक था, लेकिन जब कुछ दिनों के अंतराल में उनके प्यार का अंकुर उसकी कोख में साँसें लेने लगा तो शिवि के होश उड़ गए…। उसने रुद्र पर शादी के लिए दबाव बनाया, पर वह ना-नुकुर करने लगा और उससे इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए जबर्दस्ती करने लगा। उसके पैरेंट्स को भी रुद्र नहीं पसंद आया, क्योंकि उन लोगों को अपने ब्राम्हण होने का बड़ा गुरूर भी था। और रुद्र तो पिछड़ी जाति का था। उसने आरक्षण वर्ग से पढ़ कर उसी कोटे का लाभ उठा कर नियुक्ति पाई थी। इस बात को ध्यान में रख कर उन्होंने शादी से साफ इंकार कर दिया था।
प्यार में डूबी हुई शिवि ने अपनी कोख के अजन्मे बच्चे की साँसों के लिए रुद्र के साथ कोर्ट मैरिज कर ली। एक प्यारे से बेटे की माँ बन वह बहुत खुश थी। घर में पिता के समान रिटायर्ड ससुर और माँ की तरह प्यार करने वाली सास थीं। सब-कुछ बहुत अच्छा चल रहा था।
मातृ अवकाश के बाद जब उसने ऑफिस ज्वाइन किया तो घर में मम्मी जी प्यारे से गोलू की देखभाल के लिए थी, इसलिए उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी।
कुछ दिनों से वह देख रही थी कि रुद्र अपनी नई सेक्रेटरी मेहुल के साथ कुछ ज्यादा ही हँस-हँस कर बात करते हैं… कभी कॉफी की चुस्कियाँ तो कभी मीटिंग के बहाने देर-देर तक बाहर रहने लगे थे। उसे अपने पुराने दिनों की मस्ती याद आ गई तो मन में कुछ संशय के बादल मंडरा उठे…। उसने रुद्र से टोका-टाकी की तो वह उस पर चिल्ला पड़े और उससे नाराज होकर दूरी बना कर रहने लगे…। वह एक क्लाईंट के साथ मीटिंग का कह कर ५ दिन के लिए शिमला चले गए। मेहुल उसके पहले से ही मेडिकल लीव पर चल रही थी। अब तस्वीर पूरी साफ थी, दोनों के बीच कुछ खिचड़ी पक रही थी। वह भी कम नहीं थी, फोन की जी.पी.एस. से जगह पता करके उसने दोनों को रंगरलियाँ मनाते हुए रंगे-हाथों पकड़ लिया था, लेकिन रुद्र घर लौटने की बजाय मेहुल के साथ ‘लिव इन’ में रहने लगे थे। उसके अपने माता-पिता ने तो उसके साथ रिश्ता ही तोड़ रखा था…, इसलिए और साथ में नन्हा गोलू उसकी कमजोरी और मजबूरी दोनों ही थी। उसने इसे नियति मानकर परिस्थिति के साथ समझौता कर लिया। वह अपने बूढ़े सास-ससुर की देखभाल करती रही, परंतु रूद्र के धोखे के कारण वह अंदर ही अंदर टूट गई थी। उसने अपनी नौकरी भी बदल ली, पर वह ४ वर्ष तक अकेली रहते-रहते अपनी ज़िंदगी से निराश हो गई। उसके मन में आत्महत्या का विचार हावी होता जा रहा था। वह चिड़चिड़ी और गुमसुम रहने लगी थी। वह बिना मतलब बेटे गोलू पर झुंझला उठती…। कभी-कभी थप्पड़ भी लगा देती, बाद में बहुत पछताती लेकिन उसका अपने पर से कंट्रोल हटता जा रहा था। वह अवसाद से पीड़ित होती जा रही थी। उसके अकेलेपन और उसकी तकलीफ को उसके सहकर्मी मलय ने महसूस किया। उन्होंने आगे बढ़ कर उसे सहारा दिया। मनोचिकित्सक के पास लेकर गए और उसका इलाज करवाया। धीरे-धीरे उन दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई…, क्योंकि मलय भी इसी तरह वासु से धोखा खा चुके थे, इसलिए वह भी उसी पीड़ा से गुजर रहे थे। लगभग २ साल के बाद एक कदम आगे बढाते हुए उन दोनों ने शादी के बंधन में बंधने का निर्णय ले लिया।
शिवि अपने सास-ससुर, जिन्हें अब वह अपने माता-पिता समझने लगी थी, से मिलवाने के लिए अपने साथ मलय को लेकर आई। उन दोनों की अनुभवी निगाहें मलय को देखते ही सब समझ गईं थी। अगली सुबह ही उन दोनों की नजरों में और उनकी बातचीत में अंतर आ गया था…। वह तरह-तरह से दूसरी शादी की ऊँच-नीच समझाने लगे, पत्नी धर्म की दुहाई देने लगे। यहाँ तक तो सब ठीक था, पर अब वह मलय से दोस्ती तोड़ने के लिए उस पर दबाव डालने लगे, “शिवि तुम अपना भला चाहो तो नौकरी बदल लो… मलय सही आदमी नहीं है, वह तुम्हारा इस्तेमाल कर रहा है…” आदि आदि…।
वह तनाव में रहने लगी थी… वह क्या निर्णय ले, इसी पशोपेश में कुछ समझ नहीं पा रही थी। मलय उसे अपने माता-पिता से मिलवाना चाहते थे। यद्यपि, कि वह स्काइप पर उन लोगों के साथ अक्सर बात करती रहती थी, परंतु उन लोगों का कहना था कि शादी करने से पहले एक बार उनका घर, परिवार और रिश्तेदारों से मिलकर एक-दूसरे को समझना आवश्यक है। उसके बाद ही निर्णय लेना उचित होगा।
वह इसी ऊहा-पोह में थी, तभी एक दिन रुद्र लुटे-पिटे से लौट कर घर आ गए थे…। उसे ये कहानी सुनाई गई कि उन्हें बेटे की बहुत याद आ रही थी…। मालूम हुआ कि उनकी तथाकथित गर्लफ्रेंड ने उन्हें अपने घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया था और अपनी हरकतों के कारण उनकी नौकरी भी छूट चुकी थी। अब वह फिर से उसके साथ ज़िंदगी की नई शुरूआत करना चाहते हैं…। रुद्र के प्यार की चाशनी में डूबे हुए शब्दों को सुनकर और नई डायमंड रिंग की जगमगाहट में एक क्षण को उसका मन डगमगा उठा एवं रुद्र के साथ बिताए हुए प्यारे पलों की स्मृतियाँ ताजा हो उठीं…, लेकिन जब उसने गंभीरता पूर्वक विचार किया तो समझ में आया कि दरअसल सच्चाई यह है कि उन लोगों की आँखों के सामने उसकी ९० हजार की सैलरी से होने वाली ऐश और ठाट-बाट तैर रहे थे, क्योंकि रुद्र भी माता-पिता को फुसलाकर रकम ले जाया करते थे।
उसके मन में अभी भी बहुत हिचकिचाहट थी, कि एक बार जीवन में धोखा खा चुकी है, उसे कहीं फिर से न धोखा मिले…। अच्छा यही है, कि जैसे चल रहा है चलने दे और फिर से रुद्र को एक मौका दे…! लेकिन जब उसने मलय की सूनी आँखों में झांक कर अपने प्यार की गहराइयों को देखा तो उसे तुरंत समझ में आ गया कि मलय के बिना अब उसका जीवन अधूरा है…।
अंततः उसी क्षण उसने निर्णय ले लिया और वह गोलू की अंगुली पकड़ कर मलय के साथ उसके माता-पिता से मिलने के लिए एयरपोर्ट के लिए चल दी थी।